________________
( ४० ) "भला पश्चिमीय विचारों के मानने वाले आधुनिक अध्यापकों से पूछो तो सही कि क्या प्रसेनजित, कोसल, चण्डप्रद्योत, बिम्बसार आदि के कोई शिलालेख अभी तक मिले हैं या नहीं। यदि नहीं मिले तो पुनः आप बौद्ध और जैन-साहित्य में उल्लेखमात्र होने से इनका अस्तित्व क्यों मानते हो । यदि सहस्रों गप्पों के होते हुए भी बौद्ध और जैन-साहित्य इतना प्रामाणिक है, तो दो-चार असम्भव बातों के आ जाने से महाभारत और दूसरे आर्ष-ग्रंथ क्यों प्रमाण नहीं ?'
हमें यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से महाभारत की प्रामाणिकता पर कुछ विचार नहीं करना है। प्राचीन भारतीय इतिहास के एक मूल आधार के रूप में महाभारत तो प्रायः सभी को मान्य है; पर जैन-ग्रन्थों में गप्पों का जो उल्लेख भगवत्दत्त ने किया, उस पर मुझे आपत्ति अवश्य है।
डाक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने "जैन-ज्योतिष और उसका महत्व' शीर्षक से एक लेख लिखा है। उक्त लेख में प्राचीन ग्रंथों के मूल्यांकन के लिए सिद्धान्त निरूपण करते हुए डा० द्विवेदी ने लिखा है
__"यह बात हमें भूल नहीं जाना चाहिए कि, प्राचीनकाल के आविष्कृत तथ्यों की महत्ता को वर्तमान युग के मानदंड से न नापकर उसी युग के मानदंड से जाँचना चाहिए । ...."
इस मानदंड को ताक पर रखकर जैन-साहित्य में ‘गप्प' मात्र देखनेवाले भगवत्दत्त से इस प्रस्तावना में इसके सिवा कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org