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________________ श्रावक-धर्म ४२१ नवतत्त्व प्रकरण (सार्थ) में उसके दो भेद बताये गये हैं ( पृष्ठ१३३ ) १ - द्रव्योत्सर्ग, २ भावोत्सर्ग । द्रव्योत्सर्ग के ४ और भावोत्सर्ग के ३ भेद हैं । इनके विपरीत आचरण करना अतिचार हैं । वीर्य के तीन अतिचार प्रवचनसारोद्वार (सूत्र २७२, पत्र ६५- १ ) में वीर्य के ३ अतिचार इस प्रकार कहे गये हैं सम्म करणे बारस तवाइयारा तिगं तु विरिअस्स । मण वय काया पावपउत्ता विरियतिग श्रइयारा ॥ तपों को मन, वचन और काया से शुद्ध रूप से करना । उसमें कमी होना ये वीर्य के तीन अतिचार हैं । सम्यकत्व के ५ अतिचार सम्यक्त्व के ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार में ( गाथा २७३ पत्र ६९-२ ) इस प्रकार कहे गये हैं संका कंखा य तहा वितिमिच्छा अन्नतित्थिय पसंसा । परतित्थि श्रवसेवणमइयारा पंच सम्मते ॥ १ - शंका - जीवादिक नवतत्त्व के विषय में संशय करना । २- कंखा - अन्य दर्शनों से वीतराग के दर्शन की तुलना करना । ३ - वितिमिच्छा-मति भ्रम होने से फल पर संदेह करना । ४ - अन्य तीर्थिक की प्रशंसा करना । ५ - अन्यतीर्थिक की सेवा करना । Jain Education International 10:1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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