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________________ ४१८ तीर्थङ्कर महावीर ६ तवारिहे, ७ छेयारिहे, ८ मूलरिहे, ६ अण वठापारिहे, १० पारंचियारिहे। -ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा १०, उद्देशः ३, सूत्र ७३३ पत्र ४७४-१। १-आलोचना-प्रायश्चित--गुरु आदि के समक्ष किये पाप का प्रकाश करना। २-प्रतिक्रमण-प्रायश्चित-किये पाप की आवृत्ति न हो, इसलिए 'मिच्छामि दुक्कड़' कहना । ३-मिश्र-प्रायश्चित--किया हुआ पाप गुरु के समक्ष कहना और 'मिच्छामि दुक्कड़' कहना। ४—विवेक-प्रायश्चित--अकल्पनीय अन्नपान आदिका विधिपूर्वक त्याग करना। ५.-कायोत्सर्ग-प्रायश्चित-काया के व्यापार को बन्द करके ध्यान करना। ६-तपः-प्रायश्चित--किये हुए पाप के दण्ड-रूप में नीवी (प्रत्याख्यान विशेष ) तप करना । . ७-छेद-प्रायश्चित--महानत के घात होने से अमुक प्रमाण में दीक्षाकाल कम करना । - ८-मूल-प्रायश्चित--महा अपराध होने के कारण मूल से पुनः चारित्र ग्रहण करना । ९-अवस्थाप्य-प्रायश्चित किये हुए अपराध का प्रायश्चित न करे तब तक महाव्रत उच्चरित न करना । १०-पाराश्चित-प्रायश्चित--साध्वी का शीलभंग करने के कारण, १-मिथ्या दुष्कृतं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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