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तीर्थङ्कर महावीर ६ तवारिहे, ७ छेयारिहे, ८ मूलरिहे, ६ अण वठापारिहे, १० पारंचियारिहे।
-ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा १०, उद्देशः ३, सूत्र ७३३ पत्र ४७४-१।
१-आलोचना-प्रायश्चित--गुरु आदि के समक्ष किये पाप का प्रकाश करना।
२-प्रतिक्रमण-प्रायश्चित-किये पाप की आवृत्ति न हो, इसलिए 'मिच्छामि दुक्कड़' कहना ।
३-मिश्र-प्रायश्चित--किया हुआ पाप गुरु के समक्ष कहना और 'मिच्छामि दुक्कड़' कहना।
४—विवेक-प्रायश्चित--अकल्पनीय अन्नपान आदिका विधिपूर्वक त्याग करना।
५.-कायोत्सर्ग-प्रायश्चित-काया के व्यापार को बन्द करके ध्यान करना।
६-तपः-प्रायश्चित--किये हुए पाप के दण्ड-रूप में नीवी (प्रत्याख्यान विशेष ) तप करना । . ७-छेद-प्रायश्चित--महानत के घात होने से अमुक प्रमाण में दीक्षाकाल कम करना । - ८-मूल-प्रायश्चित--महा अपराध होने के कारण मूल से पुनः चारित्र ग्रहण करना ।
९-अवस्थाप्य-प्रायश्चित किये हुए अपराध का प्रायश्चित न करे तब तक महाव्रत उच्चरित न करना ।
१०-पाराश्चित-प्रायश्चित--साध्वी का शीलभंग करने के कारण,
१-मिथ्या दुष्कृतं।
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