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तीर्थङ्कर महावीर
पेडा या श्रद्धपेडा, गोमुत्तिपयंग वीहिया चेव । संवुक्कावट्टायगंतु, पच्छागया
छट्ठा ॥ १६ ॥
(१) पेटिका
२
सन्दूक के आकार में (२) श्रर्द्धपेटिका के आकार में ( ३ ) गोमुत्रिका के आकार में ( ४ ) पतंगवीथिका के आकार में ( ५ ) शंखावर्त के आकार में ( ६ ) लम्बा गमन करके फिर लौटते हुए भिक्षाचरी करना- -ये ६ प्रकार के क्षेत्र - सम्बन्धी ऊनोदरी तप हैं । ।
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પૃષ્ઠ
( ५ ) काल - सम्बन्धी ऊनोदरी तप की परिभाषा उत्तराध्ययन में निम्नलिखित प्रकार से बतायी गयी है
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दिवसस्स पोरुसीणं, चउण्हं पि उ जन्तिओ भवे कोलो । एवं चरमाणो खलु, कालोमागं मुणेयव्वं ॥ २० ॥ - दिन के चार प्रहरों में से यावन्मात्र अभिग्रह - काल हो उसमें आहार के लिए जाना काल सम्बन्धी ऊनोदरीतप है ।
हवा तइयाए पोरिसीए, ऊणाए घासमेसंतो । चउभागूणाए वा, एवं कालेण उ भवे ॥ २१ ॥
१ - पेडा पेडिका इव चउकोणा
उत्तराध्ययन, शान्त्याचार्य की टीका, पत्र ६०५-२ श्रद्धपेडा इमीए चेव श्रद्धसंठीया घर परिवाडी वही २ - पयंगविही अणिमया पयंगुड्डाणसरिसा - वही
३- 'संबुक्का वहं' ति शम्बक - शङ्खस्तस्यावर्त्तः शम्बू कावर्त्तस्तद्वदावर्तो यस्यां सा शम्बूकावर्त्ता सा च द्विधा यतः सम्प्रदायः
भितरसंबुका बाहिरसंबुक्का य, तत्थ अन्तरसंबुक्काए सखना भिरवेत्तोमा आगिइए अंतो आढवति बाहिरओ संगियहइ इयरीए विवज्जओ " वही
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