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श्रावक-धर्म
बत्तीस किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ । पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला ॥। ६४२ ।
- पत्र १७३-१
-बत्तीस कवल से पुरुष का और अट्ठाइस कवल से नारी का आहार पूरा होता है।
'कवल' का परिणाम बताते हुए प्रवचनसारोद्धार सटीक ( भाग १, पत्र ४५ - २ ) में कहा गया है
कुर्कुटाण्डक प्रमाणो बद्धोऽशन पिण्डः
आवश्यक की टीका में मलयगिरि ने लिखा हैद्विसाहस्रिकेण तण्डुलेन कवलो भवति ।
- राजेन्द्राभिधान, भाग ३, पृष्ठ ३८६ । पुरुष की उनौदरिका ९, १२, १६, २४ और ३१ पाँच प्रकार की तथा स्त्री की उनौदरिका ४–८–१२–२०–२७ पाँच प्रकार कौ होती है ।
(आ) क्षेत्र सम्बंधी उनोदरी तप
ग्राम, नगर, राजधानी और निगम में; आकर, पल्ली, खेटक और कर्वट में, द्रोणमुख, पत्तन और संबाध में; आश्रमपद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थल, सेना, स्कंधकार, सार्थ, संवर्त और कोट में तथा घरों के समूह, रथ्या, और गृहों में, एतावन्मात्र क्षेत्र में भिक्षाचरण कल्पता है आदि शब्द से अन्य गृहशाला आदि जानना चाहिए । इस प्रकार का तप क्षेत्र सम्बन्धी उनोदरी-तप कहा गया है।
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क्षेत्र-सम्बंधी यह उनोदरीतप ६ प्रकार का कहा गया है । उत्तराध्ययन मैं गाथा आती है
४१३.
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१. नवतत्व प्रकरण सार्थ पृष्ठ १२६ ।
२. उत्तराध्ययन, अध्ययन ३०, गा० १६-१८
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