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तीर्थकर महावीर १-यावज्जीव २–इत्वरिक । यावजीव के दो भेद हैं-१ पादपोपगमन और २ भक्तप्रत्याख्यान । ये दो अनशन मरण पर्यन्त संलेखना पूर्वक किये जाते हैं। उनके निहारिम और अनिहारिम दो भेद हैं। अनशन
अंगीकार करके उस स्थान से बाहर जाये, तो नीहारिम और बाहर न निकले वहीं पड़ा रहे, तो अनिहारिम । ये चारों भेद यावजीव अनशन के हैं।
और, इत्त्वरिक अनशन सर्व प्रकार से और देश से दो प्रकार के होते हैं । चारों प्रकार के आहार का त्याग (चउविहार ) उपवास, छह, अट्टम आदि सर्व प्रकार के हैं और नम्मुक्कार सहित, पोरसी आदि देश से हैं।
(२) उणोदरीतप उणोदरीतप-भर पेट भोजन न करना उणोदर-तप है। यह पाँच प्रकार का कहा गया है। उत्तराध्ययन की गाथा है :
प्रोमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं । दव्वो खेत्तकालेणं, भावेणं पञ्जवेहि य ॥ १४ ॥
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की दृष्टि से उनोदरी-तप के पाँच भेद कहे गये हैं।
(अ) द्रव्य उनोदरी-तप-जितना आहार है, उसमें से कम-से-कम एक कवल खाना कम करना द्रव्य उनोदरी तप है। उत्तराध्ययन । में इसके सम्बन्ध में गाथा आती है:--
जो जस्स उ आहारो, तत्तो प्रोमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दम्वेण ऊ भवे ।। १५ ।। भोजन के परिमाण के सम्बन्ध में पिंडनियुक्ति में गाथा आती है:
१. विशेष विस्तृत विवरण के लिए देखें नवतत्त्व सुमंगला टीका सहित, पत्र १०७-४
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