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________________ श्रावक-धर्म ४११. धनतप होता है, जिसके ६४ कोष्ठक बनते हैं। यंत्र की स्थापना प्राग्वत् जाननी चाहिए। (ई) वर्गतप-धन-तप को धन से गुणाकरने अर्थात् ६४ को ६४ कर देने से ४०९६ कोष्ठक बनते हैं। (उ) वर्गवर्गतप-वर्ग को वर्ग से गुणाकार करने पर वर्गवर्ग-तप होता है । ४०९६ को ४०९६ से गुणाकरने पर १६७७२१६ कोष्ठक बनते हैं। (ऊ) प्रकीर्णतप-प्रकीर्णतप श्रेणि बद्ध नहीं होता । अपनी शक्ति के अनुरूप किया जाता है । इसके अनेक भेद हैं। यह इत्वरतप अनेक प्रकार के स्वर्ग, अपवर्ग, तेजोलेश्या आदि देने वाला है।' मरणकाल पर्यंत अनशन के सम्बन्ध में उत्तराध्ययन में आता हैजा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा विया हिया । सवियारमवियारा कायचिट्ठ पई भवे ॥ १२॥ –मरणकाल पर्यंत के अनशन-तप के भी काम चेष्टा को लेकर सविचार और अविचार ये दो भेद वर्णन किये गये हैं। अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमनीहारी, आहारच्छे दोस्तु वि॥ १३॥ -अथवा सपरिक्रम और अपरिक्रम तथा नीहारी और अनीहारी इस प्रकार यावत्कालिक अनशन-तप के दो भेद हैं । आहार का सर्वथा त्याग इन दोनों में होता है। नवतत्त्वप्रकरण सार्थ (पृष्ठ १२६ ) में आता है कि, अनशन के दो भेद हैं। १-उतराध्ययन शान्त्याचार्य की टोका सहित पत्र ६००-२ से ६०१-२ में इनका विस्तार से वर्णन आता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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