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तीर्थकर महावीर
(१) अनशन अनशन के सम्बन्ध में उत्तराध्ययन में गाथा आती है:इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा, निरक्कंखा उ बिइञ्जिया ॥६॥
-अनशन दो प्रकार का है (१) इत्वरिक और (२) मरणकाल पर्यंत । इनमें प्रथम आकांक्षा अवधि सहित और दूसरा आकांक्षा अवधि से रहित है।
जो इत्वरिक तप है वह ६ प्रकार का है। उत्तराध्ययन में गाथा आती है :
जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छब्विहो । सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होह वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमो छट्टो पइण्णतयो । मणइच्छियचित्तत्थो, नायब्यो होइ इत्तरियो ॥ ११ ॥
-जो इत्वरतप है वह ६ प्रकार का है। १ श्रेणितप, २ प्रतरतप, ३ धनतप, ४ वर्गतप, ५ वर्गवर्गतप, ६ प्रकीर्णतप ।
इनकी परिभाषा इस प्रकार है :
(अ) श्रेणितप-एक उपवास से ६ मास पर्यंत जो अनशन तप किया जाता है, उसे श्रेणितप कहते हैं।
(आ) प्रतरतप-श्रेणि से गुणाकार किया हुआ श्रेणितप प्रतरतक कहा जाता है । यथा-एक उपवास, दो, तीन, चार उपवास'
दो, तीन, चार, एक तीन, चार, एक, दो
चार, एक, दो, तीन (इ) धनतप-इस षोडशपदात्मक प्रतर को श्रेणि से गुण करने पर
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