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________________ ४०९ श्रावक-धर्म -~-गोपनीयता. गुप्ति है। मन आदि (वचन, काया) की अशुभ प्रवृत्ति का निरोध और शुभ प्रवृत्ति करना । तप के १२ अतिचार उत्तराध्ययन के ३० वें अध्ययन में तप के १२ भेद बताये गये हैं:सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभंतरो तहा । बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमभंतरो तवो ॥ ७॥ -वह तप बाह्य और अभ्यंतर भेद से दो प्रकार का कहा गया है। उसमें वाह्य तप छः प्रकार का और उसी प्रकार अभ्यंतर तप भी छः प्रकार का है। अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रस परिच्चाओ। कायकिलेसो संलोणया, य बज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥ -१ अनशन, २ उनोदरी , ३ भिक्षाचर्या, ४ रसपरित्याग, ५ कायक्लेश, और ६ संलीनता ये बाह्य तप के भेद हैं।' पायच्छितं विणो, वेयावच्चं तहेव सज्झायो । झाणं च विउस्सग्गो एसो अभितरो तवो ॥ ३०॥ -१ प्रायश्चित, २ विनय, ३ वैयावृत्य, ४ स्वाध्याय, ५ ध्यान और कायोत्सर्ग ये ६ अंतरंग (आभ्यंतर ) तप हैं। अब हम उनपर पृथक-पृथक विचार करेंगे। १-समवायांगसूत्र सटीक समवाय ६, पत्र ११-१ में पाठ है : छविहे बाहिरे तवोकम्भे प० तं-अणसणे, उणोयरिया, वित्तीसंखेवो, रसपरिच्चायो, कायकिलेसो, संलीणया । २-छविहोनाबिभतरे तव्वोकम्पो ५० तं०-पायच्छित, विणो, वेयावच्चं, सज्झायो, माणं, उस्सग्गो । -समवायांग सूत्र सटीक, स० ६, पत्र ११-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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