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श्रावक-धर्म -~-गोपनीयता. गुप्ति है। मन आदि (वचन, काया) की अशुभ प्रवृत्ति का निरोध और शुभ प्रवृत्ति करना ।
तप के १२ अतिचार उत्तराध्ययन के ३० वें अध्ययन में तप के १२ भेद बताये गये हैं:सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभंतरो तहा । बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमभंतरो तवो ॥ ७॥
-वह तप बाह्य और अभ्यंतर भेद से दो प्रकार का कहा गया है। उसमें वाह्य तप छः प्रकार का और उसी प्रकार अभ्यंतर तप भी छः प्रकार का है।
अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रस परिच्चाओ। कायकिलेसो संलोणया, य बज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥
-१ अनशन, २ उनोदरी , ३ भिक्षाचर्या, ४ रसपरित्याग, ५ कायक्लेश, और ६ संलीनता ये बाह्य तप के भेद हैं।'
पायच्छितं विणो, वेयावच्चं तहेव सज्झायो । झाणं च विउस्सग्गो एसो अभितरो तवो ॥ ३०॥
-१ प्रायश्चित, २ विनय, ३ वैयावृत्य, ४ स्वाध्याय, ५ ध्यान और कायोत्सर्ग ये ६ अंतरंग (आभ्यंतर ) तप हैं।
अब हम उनपर पृथक-पृथक विचार करेंगे।
१-समवायांगसूत्र सटीक समवाय ६, पत्र ११-१ में पाठ है : छविहे बाहिरे तवोकम्भे प० तं-अणसणे, उणोयरिया, वित्तीसंखेवो, रसपरिच्चायो, कायकिलेसो, संलीणया । २-छविहोनाबिभतरे तव्वोकम्पो ५० तं०-पायच्छित, विणो, वेयावच्चं, सज्झायो, माणं, उस्सग्गो ।
-समवायांग सूत्र सटीक, स० ६, पत्र ११-१
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