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श्रावक-धर्म पणिहाण जोगजुत्तो पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं। . चरणायारो विवरीययाई तिण्हपि अइयारा ॥
प्राणिधान अर्थात् चित्त की स्वस्थपना। अतः स्वस्थ मन से पाँच समिति और ३ गुप्तियों के साथ आचरण चरित्राचार कहा जाता है । पाँच समिति और ३ गुप्ति मिलाकर ८ हुए। इनके विपरीत जो व्यवहार हैं, वे चरित्राचार के ८ अतिचार कहे जाते हैं।'
अब हम पाँच समितियों और तीन गुप्तियों पर विचार करेंगे । ५ समितियों के नाम ठाणांग और समवायांग सूत्रों में इस प्रकार गिनाये गये हैं:
१ ईरियासमिति, २ भासासमिति, ३ एसणासमिति, ४ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिति, ५ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिति ।
समवायांग की टीका में इनकी परिभाषा इस रूप में दी गयी है:
समितयः-सङ्गताः प्रवृत्तयः, तत्रेयसिमितिः--गमने सम्यक सत्वपरिहारतः प्रवृत्तिः, भाषासमिति--निरवद्यवचन प्रवृत्तिः, एषणा समितिः-द्विचत्वारिंश दोषवर्जनेन भक्तादि ग्रहणे प्रवृत्तिः, आदाने-ग्रहणे भाण्डमात्रयोरूपकरणपरिच्छदस्य निक्षेपणे अवस्थापने समितिः।
सुप्रत्युपेक्षितादिसाङ्गत्येन प्रवृत्तिश्चतुर्थी, तथोच्चारस्य पुरीषस्य प्रश्रवणस्य मूत्रस्य खेलस्य निष्ठीवनस्य सिंघाणस्य
१-पाक्षिक अतिचार में आता है कि वे ८ व्रत साधु के लिए सदा लागू होते हैं; पर श्रावक को सामायिक अथवा पौषध के समय लागू होते हैं।
-प्रतिक्रमणसूत्र प्रबोध टीका, भाग ३, पृष्ठ ६५५ । २-ठाणांगसूत्र सटीक ठाणा ५, उदेशा ३, सूत्रा ४५७ पा ३४३-१; समवायांगसूत्रा सटीक स०५, पत्र १०-१ ।
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