SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ तीर्थंकर महावीर ४–जीविताशंसा--कपूर, कस्तूरी, चंदन, वस्त्र, गंध, पुष्प इत्यादि पूजा की सामग्री देखकर, नाना प्रकार के गीत-वाद्य सुनकर अथवा यह सुनकर कि 'यह सेठ बड़े परिवार वाला है। इसके यहाँ बहुत से लोग आते हैं, इसलिए यह धन्य है, पुण्यवान है, श्लाघा करने योग्य है' इत्यादि अपनी प्रशंसा सुनकर जो यह मन में विचार करे कि शासन की प्रभावना मेरे कारण वृद्धि को प्राप्त होती है, इस कारण मैं बहुत दिनों जीवित रहूँ तो अच्छा, ऐसा विचार करना जीविताशंसा है। ५ कामभोगाशंसा-अगले भव में मुझे कामभोग की प्राप्ति हो तो अच्छा, ऐसा जो अनशन के समय प्रार्थना करता है, उसे कामभोगाशंसा कहते हैं। ज्ञान के ८ अतिचार ज्ञान के निम्नलिखित ८ अतिचार प्रवचनसारोद्धार (सटीक) मैं गिनाये गये हैं ( गाथा २६७-पत्र ६३-२) काले' विणए बहुमाणों वहाणे तहा अनिण्हवणे । वंजणं अत्थं तदुभएं अट्ठविहो नाणमायारों ॥ २६७ ।। १-अकालाध्ययनातिचार ---शुभ कृत्यादि करने के लिए जो शुभ काल कहा गया हो, उस काल में करने से क्रिया फलदायक होती है, अन्यथा निष्फल जाती है। अतः काल बीत जाने पर पढ़ना अथवा वह क्रिया करना अकालाध्ययन-अतिचार है। २-अविनयातिचार - ज्ञान का, ज्ञानी का अथवा ज्ञान के साधन पुस्तकादि का विनयोपचार करना चाहिए। ज्ञानी के पास आसन, दान अथवा आज्ञापालनादि के विनय से पढ़ना चाहिए। ऐसा न करके विनय के अभाव में पढ़ना अविनयातिचार हैं। ३-अबहुमानातिचार -बहुमान-अर्थात् गुरु के ऊपर प्रीति रखकर अंतरंगचित्त में प्रमोद रखकर पदना। इसके विपरीत रूप में पढ़ना अबहुमान अतिचार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy