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________________ श्रावक-धर्म ४०३ १-सचित्त निक्षेर--न देना पड़े, इस विचार से सचित सजीव, घृथ्वी, जल, कुम्भ, ईधन आदि के ऊपर रख छोड़े । अथवा यह विचार कर कि अमुक वस्तु तो साधु लैगा नहीं, परन्तु निमंत्रण करने से मुझे पुण्य प्राप्त होगा। २-सचित्त पीहण-अतिचार-न देने के विचार से देय वस्तु को सूरन फलादि से ठक छोड़े। ३-कालातिकम-अतिचार--साधु के भिक्षाकाल से पहले अथवा साधु के भिक्षा कर चुकने के बाद आहार का निमंत्रण दे । ४-मत्सर-अतिचार--साधु के मांगने पर क्रोध करना अथवा न देना । या इस विचार से देना कि, अमुक ने यह दिया तो मैं क्यों न हूँ। ५-परव्यपदेश-अतिचार--न देने के विचार से अपनी वस्तु को दूसरे की कहना। संलेखना के ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार-सटीक (पूर्वभाग, गाथा २६४, पत्र ६१.१) में संलेखना के ५ अतिचार इस प्रकार गिनाये गये हैं :-- इह पर लोया संसप्पयोग मरणं च जोविप्रासंसा । कामे भोगे व तहा मरणंते च पंच हयारा ॥ १-इहलोकाशंसा--मनुष्य यदि मनुष्य-भव की आकांक्षा करे या यह विचार करे कि, इस अनशन से अगले भव मैं मैं राजा अथवा धनवान हूँगा। २-परलोकाशंसा--इस भव में रह कर इन्द्रादि देवता होने की प्रार्थना करने को परलोकाशंका-अतिचार कहते हैं । ३-मरणाशंसा-शरीर में कोई बड़ा रोग उत्पन्न होने पर अंत:करण में खेद प्राप्त करके यह विचार करे कि, मृत्यु आये तो बहुत अच्छा, यह मरणाशंसा-अतिचार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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