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तीर्थकर महावीर तो पारणे की चिन्ता करे-जैसे कल सुबह अमुक वस्तु का भोजन करूँगा। अथवा अमुक कार्य आवश्यक है, उसे कल करने जाऊँगा अथवा पोषध के निम्नलिखित १८ दूषणों का वर्जन न करे :---
(१) बिना पोसे वाले का लाया हुआ जल पिये। (२) पोषध के लिए सरस आहार करे । (३) पोषध के अगले दिन विविध प्रकार के भोजन करे । (४) पोषध के निमित्त अथवा पोपध के अगले दिन में विभूषा करे । (५) पोषध के लिए वस्त्र धुलावो । (६) पोषध के लिए आभरण बनवा कर पहने । (७) पोषध के लिए रंगा वस्त्र पहने । (८) पोषध में शरीर का मैल निकाले । (९) पोषध में बिना काल निद्रा करे । (१०) पोषध में स्त्री-कथा करे ।। (११) पोषध में आहार-कथा करे । (१२) पोषध में राज कथा करे । (१३) पोषध में देश-कथा करे । (१४) पोषध में लघुशंका अथवा बड़ी शंका बिना भूमि को पूँजे करे। (१५) पोषध में दूसरों की निन्दा करे ।
(१६) पोषध में माता-पिता, स्त्री-पुत्र, भाई-बहन आदि से वार्तालाप करे।
(१७) पोषध में चोर-कथा कहे । (१८) पोपध में स्त्री के अंगोपांग देखे ।
अतिथि-संविभाग व्रत के ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार सटीक ( पूर्वभाग गा० २७६, पत्र ७८-१) में इस प्रकार कहे गये हैं :
सच्चित्ते निक्खिवणं १ सचित्तपिहणं च २ अन्नववएसो ३। मच्छरइयं च ४ कालाईयं ५ दोसाऽतिहि विभाए ॥
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