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श्रावक-धर्म
४०१ भूमि में जाता हो तो हवेली आदि पर चढ़कर उसे अपना रूप दिखाना, जिसके फलस्वरूप वह आदमी पास आ जाये फिर किसी वस्तु को मँगाना ।
५ पुद्गलाक्षेप-अतिचार-नियम से बाहर कोई व्यक्ति जाता हो, और उससे काम हो तो उस पर कंकड़ फेंक कर, उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करे ताकि वह उसके निकट आये। फिर उसके साथ बातचित करके उसे अपना काम बताना यह पाँचवाँ अतिचार है।
पौषधव्रत के पाँच अतिचार प्रवचनसारोद्धार सटीक ( गाथा २८५, पत्र ७८-१ ) में इस प्रकार गिनाये गये हैं :
अप्पडिलेहिय अप्पमज्जियं च सेजा ३ ह थंडिलाणि ४ तहा । संमं च अणणुपालण ५ मइयारा पोसहे पंच ।। २८५ ॥
१ अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिजासंथारक अतिचार-- जिस स्थान में पौषधसंस्तारक किया है, उस भूमि की तथा संथारा की पडिलेहण (प्रतिलेखना) न करे । संथारे की जगह अच्छी तरह निगाह करके देखे नहीं, अथवा यदा-कदा देखे तो भी प्रमाद वश कुछ देखी और कुछ बिना देखी रह जाये।
२ अप्पमज्जिय दुप्पाजय सिज्जासंस्तारक अतिचार-संथारा को पूँजे नहीं अथवा यथार्थरूप में न पूँजे, जीवरक्षा न करे ।
३ अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमि अतिचार लघुनीति अथवा बड़ीनीति न व्यवहार में लाये, परिठावने की भूमि का नेत्रों से अवलोकन न करे, और करे भी तो असावधानी से करे, जीवयत्ना बिना करे।
४ अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण भूमि अतिचार जहाँ मूत्र अथवा विष्ठा करे उस भूमि को उच्चार-प्रस्रवण करने से पहले पूँजे नहीं अथवा असावधानी से पूँजे ।
५ पोसह विहिविविवरीए अतिचार-पोषध में जब भूख लगे
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