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________________ तीर्थंकर महावोर ७ – विकथा - दोष -सामायिक में बैठकर विकथाएँ नहीं करनी चाहिए । ४०० - हास्य- दोष — सामायिक में रहकर दूसरों की हँसी करना । - अशुद्ध पाठ-दोष -सूत्र पाठ का उच्चारण शुद्ध न करे । १० – मुनमुन - दोष —— सामायिक में अक्षर स्पष्ट न उच्चारित करेऐसा बोले जैसे मच्छर बोलता है । ४- अनवस्था - दोषरूप - अतिचार —- सामायिक अवसर पर न करे । ५ - स्मृतिविहोन - श्रतिचार - सामायिक किया या नहीं, उसकी पारणा की या नहीं, ऐसी भूल करना । दिशावकाशिकत्रत के ५ अतिचार हैं ! प्रवचनसारोद्धार ( सटीक ) मैं (गाथा २८४, पत्र ७८ - १ ) में उनके नाम इस प्रकार गिनाये गये हैं :आणणं १ पेसवणं २ सदृणुवाओ य ३ रुव अणुवाश्रो ४ । बहिपोगलक्खेवो ५ दोसा देसावगसस्स ॥ १. आणवणप्रयोग - प्रतिचार — नियम के बाहर की कोई वस्तु हो उसकी आवश्यकता पड़ने पर, कोई अन्यत्र जाता हो तो उससे कहकर मँगा लेना । २. पेसवण प्रयोग - अतिचार - दूसरे आदमी के हाथ नियम के भूमि के बाहर की भूमि में कोई वस्तु भेजे यह दूसरा अतिचार है । ३ सहाणुवाय अतिचार - यदि कोई व्यक्ति नियम से बाहर की भूमि में जाता हो, उसे खाँस या खरकार कर बुलाना और अपने लिए उपयोगी कोई वस्तु मँगवाना । ४ रूपानुपाती - अतिचार - यदि कोई व्यक्ति नियम से बाहर की १. विकथाएँ सात हैं —- १ स्त्रीकथा, २ भक्तकथा, ३ देशकथाएँ ४ राजकथा, ५ मृदुकरणीकथा, ६ दर्शनभेदिनी, ७ चरित्रभेदिनी । - ठाणांगसूत्र, सटीक, ठा० ७, सूत्र ५६६, पत्र ४०३।२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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