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श्रावक-धर्म
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मन के १० दोष हैं :--
१-अविवेक-दोप–सामायिक करके सब क्रिया करे; परन्तु मन में विवेक न करके निर्विवेकता से करे ।
२-यशोवांछा-दोष-सामायिक करके कीर्ति की इच्छा करे । ३-धनकांछा-दोष-~सामायिक करके धन की कामना करना ।
४-गर्व-दोप–सामायिक करके यह विचार करना कि, लोग मुझे धार्मिक कहेंगे।
५-भय दोप----लोगों की निन्दा से डरता हुआ सामायिक करना ।
६-निदान दोष---सामायिक करके निदान करे कि, इससे मुझे धन, स्त्री, पुत्र, राज, भोग, इन्द्र, चक्रवर्ती आदि पद मिलेंगे।
७-संशय-दोष—यह संशय कि, क्या जाने कि सामायिक का क्या फल होगा।
८-कषाय-दोष-सामायिक में कषाय करे अथवा क्रोध में तुरत सामायिक करने बैठ जाये।
९-अविनय-दोष-विनयहीन सामायिक करे।
१०-अबहुमान-दोष-भक्तिभाव अथवा उत्साह से हीन सामायिक करे।
वचन के भी १० दोष हैं :१-कुबोल-~-सामायिक में कुवचन बोले । २.—सहसात्कार-दोष—सामायिक लेकर बिना विचारे बोले । ३---असदारोपण-दोष-सामायिक में दूसरों को खोटी मति देना । ४.—निरपेक्षवाक्य-दोष-सामायिक में शास्त्र की अपेक्षा बिना बोले। ५-संक्षेप-दोष--सामायिक में सूत्र-पाट में संक्षेप करे अथवा अक्षर पाठ ही न करे । ६-कलह-दोष-सामायिक में सहधर्मियों से क्लेश करे।।
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