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________________ ३९८ तीर्थङ्कर महावीर १, २, ३, काया, मन अथवा वाणी से दुष्ट प्राणिधान । अब हम एक एक पर विचार करेंगे। काया के १२ दोष हैं। १--सामायिक में पैर पर पैर चढ़ा करके ऊँचा आसन लगा कर चैटे । यह प्रथम दूषण है; क्योंकि गुरु-विनय की हानि का करण होने से यह अभिमान का आसन है । २--चलासन-दोष---आसन स्थिर न रखे, बार-बार आगे-पीछे हिलाये अर्थात् चपलता करे । ३--चलदृष्टि-दोष-सामायिक की विधि छोड़कर चपलपने से चकित मृग की भाँति आँखें फिराना। ४.-सावधक्रिया-दोष---क्रिया करे; परन्तु उसमें कुछ सावध (पाप) क्रिया करे। ५-आलंबन-दोष-सामायिक में भीतादिक का आलम्बन लेकर बैठे । बिना पूँजी भीत में अनेक जीव होते हैं। इस प्रकार बैटने से वह मर जाते हैं। ६--आकुंचन-दोष--सामायिक क्रिया करके, बिना प्रयोजन हाथ-पाँव संकोचे अथवा लम्बा करे । . ७-आलस-दोष-सामायिक में आलस से अंग मोड़े, उँगलियाँ बुलाये या कमर टेढ़ी करे । ८-मोटन-दोष-सामायिक में अंगुली आदि टेढ़ी करना । ९----मल-दोष-सामायिक में खुजली आदि करे । १०—विषमासन-दोष-सामायिक में गले में हाथ देकर बैटे । ११-निद्रा-दोष-सामायिक लेकर नींद लेना । . १२-शीत आदि की प्रबलता से अपने समस्त अंगोपांग ढाँके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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