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तीर्थङ्कर महावीर १, २, ३, काया, मन अथवा वाणी से दुष्ट प्राणिधान । अब हम एक एक पर विचार करेंगे।
काया के १२ दोष हैं।
१--सामायिक में पैर पर पैर चढ़ा करके ऊँचा आसन लगा कर चैटे । यह प्रथम दूषण है; क्योंकि गुरु-विनय की हानि का करण होने से यह अभिमान का आसन है ।
२--चलासन-दोष---आसन स्थिर न रखे, बार-बार आगे-पीछे हिलाये अर्थात् चपलता करे ।
३--चलदृष्टि-दोष-सामायिक की विधि छोड़कर चपलपने से चकित मृग की भाँति आँखें फिराना।
४.-सावधक्रिया-दोष---क्रिया करे; परन्तु उसमें कुछ सावध (पाप) क्रिया करे।
५-आलंबन-दोष-सामायिक में भीतादिक का आलम्बन लेकर बैठे । बिना पूँजी भीत में अनेक जीव होते हैं। इस प्रकार बैटने से वह मर जाते हैं।
६--आकुंचन-दोष--सामायिक क्रिया करके, बिना प्रयोजन हाथ-पाँव संकोचे अथवा लम्बा करे । . ७-आलस-दोष-सामायिक में आलस से अंग मोड़े, उँगलियाँ बुलाये या कमर टेढ़ी करे ।
८-मोटन-दोष-सामायिक में अंगुली आदि टेढ़ी करना । ९----मल-दोष-सामायिक में खुजली आदि करे । १०—विषमासन-दोष-सामायिक में गले में हाथ देकर बैटे ।
११-निद्रा-दोष-सामायिक लेकर नींद लेना । . १२-शीत आदि की प्रबलता से अपने समस्त अंगोपांग ढाँके ।
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