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________________ श्रावक-धर्म ३६७ कसाई, चमार आदि बहुआरंभी जीवों के साथ व्यापार करे, उनको खर्च आदि दे। अनर्थदंड के निम्नलिखित ५ अतिचार प्रवचनसारोद्धार (गा २८२, पत्र ७५-२ ) बताये गये हैं : कुक्कुइयं मोहरियं भोगुवभोगाइरेग कंदप्पा । जुत्ताहिगरणमेए अइयाराऽणत्थदंडवए । १. कंदर्पचेष्टा-मुखविकार, भ्रूविकार, नेत्रविकार, हाथ की संज्ञा बताये, पग से विकार की चेष्टा करे, औरों को हँसाये। किसी को क्रोध उत्पन्न हो जाये, कुछ का कुछ हो । धर्म की निन्दा हो, ऐसी कुचेष्टा हो । २. मुखारिवचन--मुख से मुखरता करे, असंबद्ध वचन बोले, ऐसे काम करे जिससे चुगलखोर, लबार आदि के नाम से प्रसिद्ध हो, ऐसा वाचालपन। ३. भोगोपभोगातिरिक्त अतिचार--स्नान, पान, भोजन, चंदन, कुंकुम, कस्तूरी, वस्त्र, आभरणादिक अपने शरीर के भोग से अधिक भोगे यह भी अनर्थदण्ड है। ४. कौकुच्यअतिचार-जिसके कहने से औरों की चेतना कामक्रोध रूप हो जाये तथा विरह की बात, साखी, दोहा, कवित्त, छन्द आदि कहना। ५. संयुक्ताधिकरणअतिचार-ऊखल के साथ मूसल, हल के साथ फाला, गाड़ी के साथ युग आदि संयुक्त अधिकरण नहीं रखना। अब शिक्षाव्रतों में प्रथम शिक्षाव्रत सामायिक के अतिचार बताता हूँ। प्रवचनसारोद्धार में सामायिक के ५ अतिचार इस प्रकार बताये गये हैं काय २ मणो१ वयणाणं ३ दुप्पणिहाणं सईअकरणं च ४ अणवट्ठिय करणं चिय समाइए पञ्च अइयारा ॥२८३॥ (पत्र ७७-२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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