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तीर्थंकर महावीर से त्रस जीव उत्पन्न होते हैं । नीला वस्त्र पहनने से उसमें जूं, लीख आदि त्रस जीव उत्पन्न होते हैं । हरताल, मैनसिल आदि को पीसते समय यत्न न करने पर मक्खी -सरीखे अनेक जीव मर जाते हैं।
३. रसवाणिज्य--मदिरा-मांस आदि का व्यापार महापाप-रूप है। दूध, दही, घृत, तेल, गुड़, खाँड़ आदि का व्यापार भी रसकुवाणिज्य में आता है।
४. केशकुवाणिज्य-द्विपद, दास-दासी आदि खरीद कर बेचना । चतुष्पद गाय, घोड़ा, भैंस आदि बेचना । तीतर, मोर, तोता, मैना आदि बेचना।
५. विषकुवाणिज्य--वच्छनाग, अफीम, मैनसिल, हरताल, आदि बेचना । धनुष, तलवार, कटारी, बंदूक, आदि जिनके द्वारा युद्ध करते हैं, अथवा हल, मूसल, ऊखल, पटाखा आदि बेचना ।
सामान्य पाँच कम १. यंत्रपीलनकर्म--तिल, सरसो, इक्षु, आदि पिलाकर बेचना । यह सर्व जीव हिंसा के निमित्त-रूप यंत्रपीलन कर्म है।
२. निलांछनकर्म-बैल, घोड़े आदि को खस्सी करना, घोड़े, बैल, आदि पशुओं को दागना, ठेका लेना, महसूल उगाहना, चोरों के गाँव में बास करना आदि जो निर्दयीपने के काम हैं, वह निलांछनकर्म कहे जाते हैं।
३. दावाग्निकर्म-नयी घास उत्पन्न होगी, इस विचार से वन में आग लगाना आदि।
४. शोषणकर्म-बावड़ी, तालाब, सरोवर आदि का पानी निकाल कर सोखाना ।
५. असतीपोषणकर्म-कुतूहल के लिए पशु-पालन । माझी,
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