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________________ ३६४ तीर्थङ्कर महावीर ही दिनों तक मिश्र रहता है । अतः इस प्रकार का मिश्र भोजन करना एक अतिचार है । ' २. दुष्पकत्र मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूँ आदि को बाल आग पर भुन कर कुछ पका और कुछ कच्चा रहने ही पर खाना दुष्पक्व-अतिचार है 1 T ३. सचित्त- -चित्त का अर्थ है, चेतना - जीव । चेतना के साथ जो वस्तु हो वह वस्तु सचित्त कही जाती है । ऐसी सचित वस्तुओं का भोजन करना एक अतिचार है । ४. सचित्त प्रतिबद्धाहार -- जिसने सचित्त वस्तु का त्याग कर रखा हो, वह खैर की गाँठ से गोंद निकालकर खाये । गोंद अचित्त है; पर सचित्त के साथ मिला हुआ होने से उसके खाने में दोप लगता है । पके आम, खिरनी, बेर आदि इस विचार से खाये कि, मैं तो अचित्त खा रहा हूँ, सचित्त गुठली तो थूक दूँगा, ऐसा विचार करके फल का खाना भी इस अतिचार के अंतर्गत आता है । ५. तुच्छौषधिभक्षण - तुच्छ से तात्पर्य असार से है । जिस वस्तु के खाने से तृप्ति न हो, ऐसी चीज खाने से यह अतिचार लगता है । उदाहरण के लिए कहें चने का फूल, मूँग चवला आदि की फली । इनके अतिरिक्त कर्म-सम्बन्धी १५ अतिचार हैं । उनका उल्लेख उपदेशप्रासाद में इस प्रकार किया गया है : अंगार, वन, शकट, भाटक, स्फोटक, जीविका, दंत लाक्षारस केश विष वाणिज्यकानि च ॥२॥ १ - अग्न्यादिना यदसंस्कृतं शालिगोधूममौषध्यादि तदनाभोगातिक्रमादिना भुञ्जानस्य प्रथमो अतिचारः - प्रवचनसारोवार सटीक, पत्र ७६ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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