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________________ ' श्रावक-धर्म करके दूसरी दिशा में २५ योजन अधिक बढ़ा दे, तो यह क्षेत्रवृद्धि अतिचार है। ५. स्मृत्यन्तर्धान-सौ योजन का व्रत लेने के बाद, यदि चलते समय शंका हो जाये कि १०० का व्रत लिया था या ५० का! फिर ५० योजन से अधिक जाना स्मृत्यन्तर्धान अतिचार है । २-रा गुण व्रत-भोगोपभोग के २० अतिचार हैं। उनमें भोगसम्बन्धी पाँच अतिचार हैं । प्रवचनसारोद्धार में गाथा आती है : अपक्कं दुप्पक्कं सञ्चित्तं तह सचित्त पडिबद्धं । तुच्छोसहि भक्खणयं दोसा उवभोग परिभोगे ॥२८१॥ —प्रवचनसारोद्धार सटीक, पूर्वाद्ध, पत्र ७५-२ १ अपक्क, २ दुष्पक, ३ सचित्त, ४ सचित्त प्रतिबद्धाहार तथा ५ तुच्छौषधि ये पाँच भोग सम्बन्धी अतिचार हैं । इनका विष्लेषण जैनशास्त्रों में इस प्रकार है : १. अपक्व-बिना छना आटा, अथवा जिसका अग्निसंस्कार न किया हो, ऐसा आटा खाना, क्योंकि आटा पीसे जाने के बाद भी कितने -पूर्वादि देशस्य दिग्नत विषयग्य ह्रस्वस्य सतो वृद्धिः–वद्धनं पश्चिमादि पोत्रान्तर परिमाणप्रक्षेपणे दीर्धीकरणं -प्रवचनसारोद्धार पूर्वार्ध, पत्र ७६-१ २-केनचित्पूर्वस्यां दिशि योजन शतरूपं परिमाणं कृतमासीत् गमनकाले च स्पष्ट रूपतया न स्मरति-किं शतं परिमाणं कृतमुत पञ्चाशत -प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७६-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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