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________________ ३६२ तीर्थंकर महावीर ३ गुणवतों के अतिचार प्रथम गुणत्रत दिग्विरतिव्रत है। उसके निम्नलिखित ५ अतिचार हैं । उनके नाम प्रवचनसारोद्धार में इस प्रकार गिनाये गये हैं : तिरियं अहो य उहं दिसिवयसंखाइकम्मे तिन्नि । दिसिवय दोसा तह सइविम्हरणं खित्त वुड्ढी य ॥२६०॥' १. उर्ध्वप्रमाणातिक्रमण-पर्वत, तरु-शिखा आदि पर नियम लिये ऊँचाई से ऊपर चढ़ना ऊर्ध्वप्रमाणातिक्रमण अतिचार है। २. अधःप्रमाणातिक्रमण-सुरंग, कूएँ आदि में व्रत लिए गहराई से नीचे जाना। ३. तिर्यकप्रमाणातिक्रमण-पूर्वादि चारों दिशाओं में नियमित प्रमाण से अधिक जाना। ४. क्षेत्रवृद्धि अतिचार-चारों दिशाओं में १००-१०० योजन जाने का व्रत ले । फिर किसी लोभ वश एक दिशा में २५ योजन कम १-प्रवचनसारोद्धार सटीक, पूर्वार्द्ध, पत्र ७५-२ । उवासगदसाओ (पी० एल० वैद्य-सम्पादित, १ष्ठ १०) में वे इस प्रकार गिनाये गये हैं उड्ड दिसिपमाणाइकम्मे, अहो दिसिपमाणाइकम्मे । तिरियदिशि पमाणाइकम्मे, खेत्त वुड्ढी, सइ अन्तरद्धा २-पर्वत तह शिखरादिषु योऽसौ नियमतः प्रदेशस्तस्य व्यतिक्रमः -प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५-२ ३-अधोग्रामभूमिगृहकूपादीषु - प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५-२ ४-तिर्यक् पूर्वादिदिक्षु -प्रवचनसरोद्घार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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