________________
श्रावक-धर्म
३६१
मृद्भाण्डवंश काष्ठ हल शकटशस्त्र मञ्चक मचिका मसूरकादि गृहोपस्कररूपं ।'
५- द्विपद- चतुष्पद-प्रमाणातिक्रमण- श्रतिचारः- नियत परिमाण से अधिक द्विपद- चतुष्पद की कामना करना ।
श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र में द्विपदों के नाम इस प्रकार दिये गये हैं:द्विपदं - पत्नी कर्मकर कर्मकरी प्रभृत हंसमयूरकुर्कुट शुक सारिका चकोर पारापत प्रभृति ।
प्रवचनसारोद्धार में द्विपद इस प्रकार गिनाये गये हैं:
कलत्रावरुद्धदासी दास कर्मकर पदात्पादीनि । हंसमयूर कुक्कुट शुक सारिका चकोर पारापत प्रभृतीनिच चतुष्पदं श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की टीका में चतुष्पदों के नाम इस प्रकार गिनाये गये है:
गोमहिष्यादि दशविधमनन्तरोक्तं * |
प्रवचनसारोद्धार की टीका में उनके नाम इस प्रकार दिये हैं:गो महिष मेष विक करभ रासभ तुरंग हस्त्यादीनि । दशवैकालिकनियुक्ति में पूरे १० नाम गिना दिये गये हैं:--
गावी १ महिसी २ उट्ठा ३ श्रय ४ एलग ५ ग्रास ६ ग्रासतरगा ७ । घोडग ८ गद्दह । हत्थी १० चउप्पयं होइ दसहा उ || २५० ॥
ε
१- पत्र १०१-१ ऐसा ही उल्लेख प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५-२ में भी है । दशवैकालिक नियुक्ति की गाथा २५८ ( दशवैकालिक, हारिभद्रीय टीक' सहित ० ६, उ० २. पत्र १९४ - १ ) में भी इसका उल्लेख श्राता है ।
२ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र १०१-१ । ३- प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५-१ । ४- - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, पत्र १०१ - १ | ५ - प्रवचन सारोद्धार सटीक पूर्वार्ध, पत्र ७५ - १ । ६ - दशवेकालिकसूत्र हारिभद्रीयटीका सहित, पत्र २६३ - २ ।
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org