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तीर्थंकर महावीर
जिसमें दोनों प्रकार के जल से सस्योत्पादन हो, वह उभय-क्षेत्र है ।
उभय जलनिष्पाद्य सस्यमुभय क्षेत्र'
वास्तुः - 'गृह- ग्रामादि' । गृह तीन प्रकार के हैं । खात १ मुच्छ्रितं २ खातोच्छ्रितं ३ |
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खात : - 'भूमि गृहादि" ( भूमि-गृह आदि ) ।
मुच्छ्रित- 'प्रासादि* ।
खातोति - भूमि गृहस्योपरि गृहादि ।
३- रूप्य सुवर्णप्रमाणातिक्रम श्रतिचारः - रूप्प सुवर्ण के जो नियम निर्धारित करे, उसका उलंघन रूप्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम अतिचार है ।
४ – कुप्य प्रमाणितक्रम अतिचारः - स्वर्ण-रूप्य के अतिरिक्त कांसा, लोहा, तांबा आदि समस्त अजीव परिणाम से अधिक कामना करना । श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र में इस सम्बंध में उल्लेख हैं:
रूप्य सुवर्ण व्यतिरिक्तं कांस्यलोहताम्रत्र पित्तल सीसक
१ - श्राद्धप्रतिव्र मणसूत्र सटीक पत्र १०० २, प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वाद पत्र ७४ - २ में भी ऐसा ही उल्लेख है ।
पत्र १०० - २ ।
२- श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक, प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध पत्र ७४ - २ में भी ३ प्रकार के गृह बताये गये हैं । दशवैकालिकनियुक्ति. ( हरिभद्र की टीका सहित, पत्र १९३ - २) में भी ऐसा ही उल्लेख है ।
३ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक पत्र १००-२ | प्रवचनसारोधार सटीक पूर्वार्ध पत्र ७४- २ में भी ऐसा ही उल्लेख है ।
४-- - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सटीक पत्र १०० - २ । प्रवचनसारोद्धार सटीक पूर्वार्ध पत्र ७४- २ में भी ऐसा ही उल्लेख है ।
५ - श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पत्र १०० - २ | ऐसा ही उल्लेख प्रवचनसारोद्धार पटीक पूर्वार्ध पत्र ७४ - २ में भी है।
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