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उदाहरणों, दृष्टान्तों और लोक में प्रचलित कथाओं के द्वारा बड़े प्रभावशाली और रोचक ढंग से यहाँ संयम, तप और त्याग का प्रतिपादन किया गया है ।"
डाक्टर जैन ने उसका जहाँ इतना शिष्ट परिचय दिया है, वहाँ मालवणियाँ ने कल्पित लिखकर सारे ग्रंथ के ऐतिहासिक महत्त्व को नष्ट कर दिया है ।
इसी जैन आगम में ( पृष्ठ २६ ) पर उन्होंने पयेसी को श्रावस्ती का राजा बताया गया है । यह पयेसी श्वेताम्बिका का राजा था, श्रावस्ती का नहीं । रायपसेणी में पाठ आता हैतत्थणं सेयवियाए णगरीएपएसीणामं राया होत्था । – सूत्र १४२, पत्र २७४
यह मालवणियाँ का जैन आगमों के अध्ययन का नमूना है । जैनों पर प्रमाद का दोषारोपण करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि, जैन लोग 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' के मानने वाले रहे हैं और उनकी क्रियावादिता में निष्ठा का ही यह फल था श्रमणों की पाँच' संस्थाओं में से केवल जैन ही भारत में बच रहे तावस, गेरुय, आजीवक तो नष्ट ही हो गये और बौद्ध भारत से विलुप्त हो गये ।
जैनों की यह क्रियावादिता उन्हें परम्परा से मिली थी । कई वर्ष पूर्व अर्नेस्ट ल्यूमैन ने 'बुद्ध और महावीर' शीर्षक से एक
१ – निगंध १ सक्क २, तावस ३ गेरुय ४ श्रजीव ५ पंचहासमा
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- प्रवचनसारद्वार सटीक, पत्र २१२-२
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