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श्रावक-धर्म
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इस ग्रंथ में इस अर्थ के प्रमाण में मनुस्मृति का भी उल्लेख है । २. बंध - क्रोध के वश मनुष्य अथवा पशु को विनय ग्रहण कराने के लिए रस्सी आदि से बाँधना |
३. छविच्छेद - पशु आदि के अंग अथवा उपांग विच्छेद करना, बैल आदि के नाक छेदना अथवा बधिया करना, ( 'छवि' अर्थात् शरीर, ' च्छेद' अर्थात् काटना )
१- रज्ज्वादिनां गोमनुष्यादिनां नियन्त्रणं स्वपुत्रादीनामपि विनय ग्रहणार्थं क्रियते ततः कोधादिवरातः इत्यत्रापि सम्बन्धनीयं -
प्रवचनसारोद्धार सटीक, भाग १, पत्र ७१-१ २-त्वक तद्योगाच्छरीरमपि वा छविः तस्याश्छेदो—द्वैधी करणं... क्रोधादिवशत इत्यत्रापि दृश्यं
- प्र०सा०सटीक, भाग १, पत्र ७१-२
३ - कर्मग्रंथ सटीक ( चतुर विजय सम्पादित ) भाग १, पृष्ठ ४६ गाथा ३३ में अंगों के नाम इस प्रकार दिये हैं:
बाहूरु पिट्ठी सिर उर उयरंग उवंग अंगुलीयमुहा...
उसकी टीका में लिखा है
'बाहू' भुजद्वयम्, ‘ऊरू' उरुद्वमम् 'पिट्ठी' प्रतीता 'शिरः' मस्तकम् 'उर: ' वक्षः, 'उदर' पोट्टमित्यष्टावङ्गान्युच्यन्ते...
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और, निशीथ समाप्य चूर्णि भाग २, पृष्ठ २६, गाथा ५६४ में शरीर के उपांग गिनाये गये हैं:
होंति उगा करणा णासऽच्छी जंघ हत्थपाया य ।
उसकी टीका में लिखा है:
कण्णा, गासिगा, अच्छी, जंघा, हत्था, पादा य एवमादि सव्वे उगा भवंति ।
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