SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक-धर्म ३७७ इस ग्रंथ में इस अर्थ के प्रमाण में मनुस्मृति का भी उल्लेख है । २. बंध - क्रोध के वश मनुष्य अथवा पशु को विनय ग्रहण कराने के लिए रस्सी आदि से बाँधना | ३. छविच्छेद - पशु आदि के अंग अथवा उपांग विच्छेद करना, बैल आदि के नाक छेदना अथवा बधिया करना, ( 'छवि' अर्थात् शरीर, ' च्छेद' अर्थात् काटना ) १- रज्ज्वादिनां गोमनुष्यादिनां नियन्त्रणं स्वपुत्रादीनामपि विनय ग्रहणार्थं क्रियते ततः कोधादिवरातः इत्यत्रापि सम्बन्धनीयं - प्रवचनसारोद्धार सटीक, भाग १, पत्र ७१-१ २-त्वक तद्योगाच्छरीरमपि वा छविः तस्याश्छेदो—द्वैधी करणं... क्रोधादिवशत इत्यत्रापि दृश्यं - प्र०सा०सटीक, भाग १, पत्र ७१-२ ३ - कर्मग्रंथ सटीक ( चतुर विजय सम्पादित ) भाग १, पृष्ठ ४६ गाथा ३३ में अंगों के नाम इस प्रकार दिये हैं: बाहूरु पिट्ठी सिर उर उयरंग उवंग अंगुलीयमुहा... उसकी टीका में लिखा है 'बाहू' भुजद्वयम्, ‘ऊरू' उरुद्वमम् 'पिट्ठी' प्रतीता 'शिरः' मस्तकम् 'उर: ' वक्षः, 'उदर' पोट्टमित्यष्टावङ्गान्युच्यन्ते... - और, निशीथ समाप्य चूर्णि भाग २, पृष्ठ २६, गाथा ५६४ में शरीर के उपांग गिनाये गये हैं: होंति उगा करणा णासऽच्छी जंघ हत्थपाया य । उसकी टीका में लिखा है: कण्णा, गासिगा, अच्छी, जंघा, हत्था, पादा य एवमादि सव्वे उगा भवंति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy