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तीर्थकर-महावीर (१) वध-साधारण दृष्टि से वध का अर्थ हत्या करना होता है । पर, यहाँ वध से तात्पर्य लकड़ी आदि से पीटना मात्र है । यह शब्द उत्तराध्ययन में भी आता है। वहाँ उसकी टीका इस प्रकार दी है :
अ-लता लकुटोदितडनैः'
यह शब्द सूत्रकृतांग में भी आया है और वहाँ भी टीकाकार ने इसकी टीका में 'लकुटादि प्रहार लिखा है । प्रवचनसारोद्धार में जहाँ अतिचारों के सम्बन्ध में 'वध' शब्द आया है, वहाँ उसकी टीका करते हुए टीकाकार ने लिखा हैः
लकुटादिना हननं, कषायादेव वध इत्यन्ते ।
कषाय के वश होकर लकुटादि से मारना—उसका जो प्रतिफल हुआ, उसे 'वध' कहते हैं।
संस्कृत साहित्य में भी 'वध' का एक अर्थ 'आप्टेज-संस्कृत इंगलिशडिक्शनरी' (भाग २, पृष्ठ १३८५) में 'लो' तथा 'स्ट्रोक' लिखा है तथा उसे स्पष्ट करने के लिए उदाहरण में महाभारत का एक श्लोक दिया है। पुनरज्ञातचर्यायां कोचकेन पदावधम् ।
__-~महाभारत १२, १६, २१
१-उत्तराध्ययन शान्त्या चार्य की टीका सहित, अ०१, गा० १६ पत्र.५३११ ऐसी ही टीका नेमिचन्द्राचार्य जीने ( उत्तराध्ययन सटीक, पत्र ७.१) तथा भावविजय उपाध्याय ने ( उत्तराध्ययन सटीक पत्र ३-२) में भी की है। प्रश्नव्याकरण सटीक पत्र ६६-१ में अभयदेव सूरि ने 'वध' का अर्थ 'ताड़नम्' लिखा है।
२-सूत्रकृतांग सटीक भाग १ ( गौड़ी जी, बम्बई ) ५, २, १४ पत्र १३८-१ ३-प्रवचनसारोद्धार सटीक, भाग १, पत्र ७१-१
४--कषाय चार हैं:-चत्तारि कसाया पं० तं० कोहकसाए, माणकसाए माया कसाए लोभकसाए...
ठणांग सूत्र सटीक ठाणा ४, उ० १, सूत्र २४६, पत्र १६३१
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