________________
श्रावक-धर्म
३७ (अ) ग्रहणतो व्रतस्यातिक्रमणे
(आ) मिथ्यात्वमोहनीयोदय विशेषादात्मनोऽशुभाः परिणाम विशेषा
जैन-शास्त्रों में श्रावक-व्रतों के अतिचारों की संख्या १२४ बतायी गयी है। प्रवचनसारोद्धार में उनकी गणना इस प्रकार गिनायी गयी है:
पण संलेहण पन्नरस कम्म नाणाइ अट्ठ पत्तेयं । बारस तव विरियतिगं पण सम्म वयाई पत्तेयं ॥ इसे स्पष्ट करते हुए प्रकरण-रत्नाकर में लिखा है :
संलेषणा के ५ अतिचार, कादान के १५ अतिचार, ज्ञान के ८ अतिचार, दर्शन के ८ अतिचार, चरित्र के ८ अतिचार, तप के १२ अतिचार, वीर्य के ३ अतिचार, सम्यक्त्व के ५ अतिचार तथा द्वादश व्रतों में प्रत्येक के ५ अर्थात् कुल ६० अतिचार होते हैं। इस प्रकार सब मिलकर १२४ अतिचार हुए
हमने अभी श्रावकों के १२ व्रतों का उल्लेख किया है। अतः हम पहले उनके ही अतिचारों का उल्लेख करेंगे।
१ प्रथम व्रत स्थूलप्राणातिपातविरमण के ५ अतिचार हैं। पंढम वये अइचारा नरतिरिवाणऽन्नपाणवोच्छेनो। बंधो वहो य अइभाररोवण तह छविच्छेनो॥ १-(अ) व्यवहार सूत्र, उ०१ ।
(आ) अभिधान राजेन्द्र, भाग १, पृष्ठ ८ । २--उवासगदसाओ सटीक, पत्र ६.२ । ३-प्रवचनसारोद्धार सटीक, भाग १, द्वार ५, गाथा २६३ पत्र ६१-१ । ४-प्रकरण-रत्नाकर, भाग ३, पृष्ठ ५८ ।
५-प्रवचनसारोद्धार, पूर्व सटीक भाग, गाथा २७४, पत्र ७०-२ । उवा सगदसायो में भी स्थूलप्रणतिपातविरमण के ५ अतिचार बताये गये हैं:बन्धे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाणवोच्छए
-उवासगदसायो ( वैद्य-सम्पादित ) पृष्ठ १२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org