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तीर्थंकर महावीर पूरी होने तक कामत्सर्ग में रहना। यह प्रतिमा पाँच मास कालमान की होती है।
६--अब्रह्मवर्जनप्रतिमा-पूर्वोक्त पाँच प्रतिमाओं के पालन के साथसाथ ६ मास तक ब्रह्मचर्य का पालन करना । इसका काल ६ मास का है ।
७-सचित्तवर्जनप्रतिमा-पूर्वोक्त ६ प्रतिमाओं के पालन के साथसाथ सात महीने तक सचित्त आहार का त्याग करना ।
८-आरम्भवर्जनप्रतिमा-पूर्वोक्त ७ प्रतिमाओं के पालन के साथसाथ आठ महीने तक ( केवल अन्य कार्यों में नहीं, किंतु आहार में भीअर्थात् समस्त कार्यों में) अपनी जात से आरम्भ करने का त्याग करना ।
९-प्रेष्यवर्जनप्रतिमा-आठों प्रतिमाओं के पालन के साथ-साथ ९ मास तक नौकर आदि से आरम्भ न कराना ।
१०--उद्दिष्ठवर्जन-९ प्रतिमाओं के साथ-साथ १० मास तक अन्य प्रतिमाधारी के उदेशी के बिना प्रेरणा के तैयार किया आहार न लेना ।
११-श्रमणभूतप्रतिमा-पूर्वोक्त १० प्रतिमाओं के पालन के साथसाथ ११ महीने तक स्वजनादि के सम्बंध को तज कर, रजोहरण आदि साधुवेश को धारण करके और केश का लोच करके गोकुल आदि स्थानों में रहना ।
'प्रतिपालकाय श्रमणोपासकाय भिक्षां दत्त' कहने पर भिक्षा देने वाले को 'धर्मलाभ' रूपी आशीर्वाद दिये बिना आहार न लेना और साधु-सरीखा सम्यक् आचार पालना ।
अतिचार जैन-शास्त्रों में जहाँ श्रावक के धर्म बताये गये हैं, वहाँ अतिचारों का भी उल्लेख है। अतिचार शब्द की टीका करते हुए व्यवहारसूत्र के टीकाकार ने लिखा है:
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