SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक-धर्म ३७१ प्रतिमा का शाब्दिक अर्थ अभिग्रह-प्रतिज्ञा है। उपासक की निम्नलिखित ११ प्रतिमाएँ हैं : १ दर्शन श्रावक-शंकादि पाँच दोषों से रहित प्रशमादि पाँच लक्षणों के सहित, धैर्य आदि पाँच भूषणों से भूषित, जो मोक्षमार्ग रूप महल की पीठिका रूप 'सम्यक् दर्शन' और उनके भय लोभ लज्जा आदि विघ्नों से किंचित् मात्र अतिचार सेये विना निरतिचार से एक महीना तक सतत पालन करना यह पहली दर्शनप्रतिमा है । इसे एक मास कालमान वाली जाननी चाहिए।' 1-शंकाकालाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवा -तत्वार्थसूत्र ७-१८ २-संवेगो १ चिय उवसम २, निब्वेयो ३ तह य होइ अणुकम्पा । अस्थिक्कं चिय ए ए, सम्मत्ते लक्खणा पंच ॥ १३६ ॥ -धर्मसंग्रह गुजराती अनुवाद सहित, भाग १, पृष्ठ १२२ ३-जिणसासणे कुसलया १, पभावणा २, तित्थ (ऽऽययण) सेवणा ३ थिरया ४ भत्ती अगुणा सम्मत्त, दीवया उत्तमा पंच ॥ १३५ ॥ -धर्मसंग्रह ( वही) पृष्ठ १२१ ४-सम्यक्त्वं तत्प्रतिपन्नः श्रावको दर्शन-श्रावकः, इह च प्रतिमानां प्रक्रान्तत्वेऽपि प्रतिमा प्रतिमावतोरमेदोपचारात्प्रतिमावतो निर्देशः कृतः, एवमुत्तरपदेष्वपि, अयमत्र भावार्थ:-सम्यग्दर्शनस्य शङ्कादिशल्यरहितस्थाणुव्रतादिगुणविकलस्य योऽभ्युपगमः सा प्रतिमा प्रथमेति''-समयायांगसूत्र सटीक, पत्र १६-१ पसमाइगुणविसिह कुग्गहसंका इसल्लपरिहीणं । सम्मदंसणमणहं दसणपडिमा हुवइ पढमा ॥ ६७२ ॥ -प्रवचनसारोद्धार सटीक, भाग २ पत्र २६३-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy