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तीर्थंकर महावीर
२ - कृतव्रतकर्म --- दर्शन - प्रतिमा में उल्लिखित रूप में सम्यक् दर्शन के पालन के साथ दो महीना तक अखंडित और अविराधित ( अतिक्रमादि दोषों से रहित निरतिचार पूर्वक ) श्रावक के १२ व्रतों का पालन करना । यह दो मास काल वाली दूसरी व्रत प्रतिमा है ।
३ – कृतसामायिक – दोनों प्रतिमाओं में सूचित सम्यकत्व और व्रतों का निरतिचार पूर्वक पालन करने के उपरान्त तीन महीना तक प्रत्येक दिन ( प्रातः सायं ) उभय काल अप्रमत्त रूप में सामायिक करना । यह तीसरी प्रतिमा तीन महीने के कालमान की है ।
४ - पौषध प्रतिमा' - पूर्वोक्त वर्णित तीन प्रतिमाओं के पालन के साथ-साथ चार मास तक हर एक चतुष्पव में सम्पूर्ण आठ प्रहर के पौषध का ( निरतिचार पूर्वक ) अखंड पालन करना । यह प्रतिमा चार मास कालमान की है ।
१ (अ) – कृतम् — अनुष्टितं व्रतानाम् - अणुव्रतादीनां कर्म तच्छु वणज्ञानवाञ्चाप्रतिपत्ति लक्षणं ये न प्रतिपन्न दर्शनेन स कृतव्रत कर्मा प्रतिपन्नाणुव्रतादिरिति भाव इतीयं द्वितीया
- समवायांगसूत्र सटीक, पत्र १६ - १
(श्रा) वीयाणुव्वयधारी
-प्रवचनसारोद्धार सटीक पत्र २९३ - १ २. सामायिकं सावद्य योग परिवर्ज निखद्य योग्यसेवन स्वभावं कृतं विहितं देशतो येन स सामायिक कृतः, श्राहिताग्न्यादिदर्शनात् कान्तस्योत्तरपदत्त्वं, तदेवमप्रतिपन्न पौषधस्य दर्शनघतो पेतस्य प्रतिदिनंमुभयसंध्यं सामायिक करणं मास त्रयं यावदिति तृतीया प्रतिमेति— - समवायांग सूत्रसटीक, पत्र १६ - १ ३- पोषं पुष्टि कुशलधर्माणां धत्ते यदाहारत्यागादिकमनुष्ठानं तत्पौषधं तेनोपवसनं — अवस्थानही — रात्रं यावदिति पौषधोपवास इति, अथवा पौषधं
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