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________________ ३७० तीर्थकर महावीर चतुर्थ श्रन्यापारपौषध-व्यापार आदि पाप कार्य न करना । यह व्रत अष्टिमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या को किया जाता है।' ४--अतिथिसंविभाग--न्याय से उपार्जित और जो खप ( काम में आ) सके, ऐसी खान-पान आदि के योग्य वस्तुओं का इस रीति से शुद्ध भक्ति भाव पूर्वक सुपात्र को दान देनाप्रतिमा जिससे उभयपक्ष को लाभ पहुँचे-वह अतिथिसंविभाग व्रत है । प्रतिमा जिस प्रकार उपासकों के १२ व्रत हैं, उसी प्रकार उनके लिए ११ प्रतिमाएँ भी हैं। 'प्रतिमा' शब्द की टीका करते हुए समवायांगसूत्र में टीकाकार ने लिखा है : प्रतिमा:-प्रतिज्ञाः अभिग्रहरूपाः उपासक प्रतिमा । उनके नाम इस प्रकार गिनाये गये हैं :-- एक्कारस उवासग पडिमाओ प० तं०-दसणसावर १, कयव्वयकंमे २, सामाइअकडे ३, पोसहोववासनिरए ४, दिया बंभयारी रत्ति परिमाणकडे ५, दिवि रामोवि वंभयारी असिणाई वियडभोई मोलिकडे ६, सचित परिणाए ७, प्रारंभ परिराणाए ८, पेस परिणाए ६, उद्दिभत्तपरिणाए १०, समणभूए ११ । १-धर्मसंग्रह गुजराती अनुवाद सहित, भाग १, पष्ठ २४१.२४३ २-समवायांगसूत्र सटीक, समवाय ११, सूत्र ११, पत्र १६-१ ३-समवायांगसूत्र सटीक सूत्र ११ पत्र १८-२ प्रवचनसारोद्धार में भी श्रावकों की ११ प्रतिमाए इसी रूप में गिनायी गयी हैं :दसण १ वय २ सामाइय ३ पोसह ४ पडिमा ५ अबंभ ६ सच्चित्ते आरंभ ८ पेस , उद्दिट्ट १० वज्जए समणभूए ११ य ॥ १८ ॥ -प्रवचनसारोद्धार सटीक, द्वार १५३, पत्र २६२।२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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