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तीर्थंकर महावीर सात के सम्बन्ध में ऐसा ही स्पष्टीकरण-श्रावक-धर्म-प्रज्ञप्ति में भी है।
त्रयाणां गुणव्रतानां शिक्षात्रतेषु गणनात्
सप्त शिक्षा व्रतानीत्युक्तम् ॥ अर्थात् ३ गुणव्रत को ४ शिक्षाव्रत के साथ गणना करने से सात शिक्षाव्रत होते हैं।
इन व्रतों का उल्लेख तत्त्वार्थ सूत्र में इस प्रकार है :- अणुव्रतोऽगारी ॥ १५ ॥ दिग्देशानर्थ दण्डविरति सामायिक पौषधोपवासोपभोगपरिभोग परिमाणाऽतिथि संविभाग व्रत संपन्नश्च ॥ १६ ॥
मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥ १७ ॥ संक्षेप में इन व्रतों का विवरण इस प्रकार है :अणुव्रतः-- १. स्थूल प्राणतिपात से विरमण-अहिंसा-व्रत लेना। २. स्थूल मृषावाद से विरमण-मिथ्या से मुक्त रहने का व्रत लेना।
३. स्थूल अदत्तादान से विरमण-बिना दी हुई वस्तु न ग्रहण करने का व्रत लेना।
४ स्वदार संतोष---अपनी पत्नी तक ही अपने को सीमित रखना।
१. राजेन्द्रामिधान भाग ७, पष्ठ ८०५ ।
२. तत्त्वार्थ सूत्र .( जैनाचार्य श्री आत्मानन्द-जन्म-शताब्दी-स्मारक-ट्रस्ट-बोर्ड, बम्बई ) पष्ठ २६१,२६२ ।।
तत्वार्थाधिगमसूत्र खोपज्ञ भाष्य सहित, भाग २. पष्ठ ८८ में टीका में कहा है:
तत्र गुणव्रतानि त्रीणि-दिग्भोगपरिभोगपरिमाणानर्थदण्ड विरतिसंज्ञान्यणुव्रतानां भावना भूतानि.......
शिक्षापदव्रतानि—सामायिक देशावकाशिक पौषघोपवासातिथिसंविभागाख्यानि चत्वारि.......
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