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________________ ३६६ तीर्थंकर महावीर सात के सम्बन्ध में ऐसा ही स्पष्टीकरण-श्रावक-धर्म-प्रज्ञप्ति में भी है। त्रयाणां गुणव्रतानां शिक्षात्रतेषु गणनात् सप्त शिक्षा व्रतानीत्युक्तम् ॥ अर्थात् ३ गुणव्रत को ४ शिक्षाव्रत के साथ गणना करने से सात शिक्षाव्रत होते हैं। इन व्रतों का उल्लेख तत्त्वार्थ सूत्र में इस प्रकार है :- अणुव्रतोऽगारी ॥ १५ ॥ दिग्देशानर्थ दण्डविरति सामायिक पौषधोपवासोपभोगपरिभोग परिमाणाऽतिथि संविभाग व्रत संपन्नश्च ॥ १६ ॥ मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥ १७ ॥ संक्षेप में इन व्रतों का विवरण इस प्रकार है :अणुव्रतः-- १. स्थूल प्राणतिपात से विरमण-अहिंसा-व्रत लेना। २. स्थूल मृषावाद से विरमण-मिथ्या से मुक्त रहने का व्रत लेना। ३. स्थूल अदत्तादान से विरमण-बिना दी हुई वस्तु न ग्रहण करने का व्रत लेना। ४ स्वदार संतोष---अपनी पत्नी तक ही अपने को सीमित रखना। १. राजेन्द्रामिधान भाग ७, पष्ठ ८०५ । २. तत्त्वार्थ सूत्र .( जैनाचार्य श्री आत्मानन्द-जन्म-शताब्दी-स्मारक-ट्रस्ट-बोर्ड, बम्बई ) पष्ठ २६१,२६२ ।। तत्वार्थाधिगमसूत्र खोपज्ञ भाष्य सहित, भाग २. पष्ठ ८८ में टीका में कहा है: तत्र गुणव्रतानि त्रीणि-दिग्भोगपरिभोगपरिमाणानर्थदण्ड विरतिसंज्ञान्यणुव्रतानां भावना भूतानि....... शिक्षापदव्रतानि—सामायिक देशावकाशिक पौषघोपवासातिथिसंविभागाख्यानि चत्वारि....... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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