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________________ श्रावक-धर्म ३६५ जहाँ उपासकों का वर्णन आता है, वहाँ १० (मुख्य) उपासक गिनाये गये हैं : उवासगदसाणं दस अज्झयणा पं० तं०-आणंदे १, कामदेवे २ अ, गाहावति चूलणीपिता ३ । सुरादेवे ४ चुल्लसतते ५ गाहावति कुंडकोलिते ६ ॥ १ ॥ सद्दालपुत्ते ७ महासतते ८, णंदिणीपिया ६, सालतियापिता ( सालिहीपिय )१०॥ गृही अथवा श्रावक के १२ धर्म बताये गये हैं। उपासकदशा में आनन्द ने उन बारह धर्मों को स्वीकार किया था। वहाँ पाठ है : पञ्चचाणुब्वइयं सत्त सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म ... अर्थात् गृही को पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत ये बाहर धर्म पालन करने आवश्यक हैं । ठाणांग सूत्र में पाँच अणुव्रत इस रूप में बताये गये हैं: पंचाणुवत्ता पं० २०-थूलातो पाणाइवायातो वेरमण, थूलातो मुसावायातो वेरमणं, थूलातो अदिन्नदानातो वेरमणं, सदार-संतोसे, इच्छा परिमाणे। और सात गुणवतों का स्पष्टीकरण श्रावक-धर्म-विधि-प्रकरण ( सटीक) में इस प्रकार किया गया है : सम्मत्त मूलिया ऊ पंचाणुव्वय गुणध्वया तिणि । चउसिक्खापय सहियो सावग धम्मो दुवालसहा ॥ १. ठाणाग सूत्र सटीक ठाणं १०, उ० ३, सूत्र ७५५ पत्र ५०६-१ । २. उवासगदसाओ ( पी० एल० वैद्य-सम्पादित ) पृष्ठ ६ । ऐसी हो उल्लेख रायपसेणी ( बाबूधनपतसिह की ) पष्ठ २२३, ज्ञाताधर्मकथा सटीक उत्तरार्द्ध अध्ययन १४, पत्र १६६.१ । तथा विपाक सूत्र ( मोदी-चौकसी-सम्पादित) पृष्ठ ७६ में भी है। ३. ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तरार्द्ध, ठाणा ५, उ० १, सूत्र ३८६, पत्र २६०-१। ४. श्रावक-धर्म विधि-प्रकरण सटीक, गाथा १३, पत्र ८.२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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