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श्रावक-धर्म
५ इच्छा के परिणाम - परिग्रह की मर्यादा करनाअथवा आवश्यकताओं की मर्यादा स्थापित करना ।
३. गुणव्रत :
१ - दिग्विरति व्रत अपनी त्यागवृत्ति के अनुसार पूर्व, सभी दिशाओं का परिमाण निश्चित करके उसके बाहर हर कार्य से निवृत्ति धारण करना ।
२- भोगोपभोगवतः- - आहार, पुष्प, विलेपन आदि जो एक बार भोगने में आये वह भोग है' भुवन, वस्त्र, स्त्री आदि जो बार-बार भोगने में आये वह उपभोग है । इस व्रत का ग्रहण करने वाला सचित्त वस्तु खाने का त्याग करता है अथवा परिमाण करता है और १४ नियम लेता हैं; २२ अभक्ष्यों और ३२ अनंतकाय का त्याग करता है ।
२२ अभक्ष्यों के नाम धर्मसंग्रह की टीका में इस प्रकार दिये हैं चतुर्विकृतयो निन्द्या, उदुम्बर पञ्चकम् | हिमं विषं च करका, मृजाती रात्रिभोजनम् ॥ ३२ ॥ बहुबीजाऽज्ञातफले, सन्धानाऽनन्तकायिके । वृन्ताकं चलितरसं, तुच्छ पुष्पफलादि च ॥ ३३ ॥ श्राम गोरससम्पृक्तं द्विदलं चेति वर्जयेत् । द्वाविंशतिभक्ष्याणि, जैनधर्माधिवासितः ।। ३४ ।।
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- अपनी इच्छा
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पश्चिम आदि तरह के अधर्म
- धर्मसंग्रह सटीक, पत्र ७२-१ उदुम्बर, १० हिम, ११ विष, रात्रिभोजन, १५ बहुबीज,
-चार महाविगति, पाँच प्रकार के १२ करा, १३ हर प्रकार की मिट्टी, १४ १६ अनजाना फल, १७ अचार, १८ अनंतकाय, १९ बैंगन, २० चलित रस, २१ तुच्छ फूल-फल, २२ कच्चा दूध-दही छाछ आदि मिली दाल ये २२ वस्तुएँ अभक्ष्य हैं ।
इनका उल्लेख संबोधप्रकरण में भी है । ( गुजराती - अनुवाद में पृष्ठ १९८ पर इनका वर्णन आता है )
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