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श्रमण-श्रमणी
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१४८. सुभद्र - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ९३ । १४६. सुभद्रा — देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५४ ।
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१५०. सुमना - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५४ । १५१. सुमनभद्र - इसका उल्लेख अंतगड में आता है ( अंतगड- अणुत्तरोववाइय, मोदी- सम्पादित, पृ ३४ ) यह श्रावस्ती का निवासी था । बहुत वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर विपुल पर सिद्ध हुआ ( वही, पृष्ट ४६ )
१५२. सुमरुता - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ट ५४ । १५३. सुव्रता - तेतलिपुत्र वाल प्रकरण देखिए पृष्ठ ३४२-२४३ ।
१५४. सुवासव- विजयपुर - नामक नगर था उसके निकट नंदनवन - उद्यान था । उसमें अशोक यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ वासवदत्त नामक राजा था । उसकी पत्नी का नाम कृष्णा था । सुवासव उसका कुमार था। पहले उसने श्रावक व्रत ग्रहण किया। बाद में साधु हो गया । महाविदेह में जन्म लेने के बाद सिद्ध होगा ( विपाकसूत्र, मोदी-चौकसीसम्पादित, पृष्ठ ८१ ) ।
१५५. हरिकेसबल - चाण्डाल- कुल में उत्पन्न हुआ प्रधान गुणों का धारक मुनि हरिकेसबल नामक एक जितेन्द्रिय साधु हुआ है । तप से उसका शरीर सूख गया था तथा वस्त्रादि अति जीर्ण हो गये थे । उस मुनि को यज्ञवाटिका मंडप में आते देखकर ब्राह्मण लोग अनार्यों की भाँति उस मुनि का उपहास करने लगे और कटु वचन बोलते हुए उसे वहाँ आने का कारण उन्होंने पूछा । उस समय तिंदुक वृक्षवासी यक्ष उस मुनि के शरीर में प्रविष्ट होकर बोला --- " हे ब्राह्मणों ! मैं संयत हूँ, श्रमण हूँ ब्रह्मचारी हूँ, धन का संचय करने, अन्न पकाने तथा परिग्रह रखने से सर्वथा मुक्त हो गया हूँ । मैं इस यज्ञशाला में भिक्षा के लिए उपस्थित हुआ हूँ।”
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