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तीर्थंकर महावीर
मुनि की सारी बातें सुनकर ब्राह्मण रुष्ट हुए और ब्राह्मणों का रोष देखकर कुमार विद्यार्थी दंड, बेंत आदि लेकर दौड़े आये और उस मुनि को मारने लगे । उस समय कौशल्कि राजा की भद्रा नामक पुत्री ने आकर कुमारों को मारने से रोका। उसने कहा कि, यह वही ऋषि हैं जिसने मुझे त्याग दिया था । इसकी पूरी कथा उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित अध्ययन १२, पत्र १७३-१-१८५- १ में आयी है । जिज्ञासुपाठक वहाँ देख सकते हैं ।
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१५६. हरिचन्दन – इसका उल्लेख अंतगडसूत्र में आता है ( अंतगड - अणुत्तरोववाइय, मोदी सम्पादित, पृष्ठ ३४ ) | यह साकेत का गृहपति था । १२ वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर विपुल पर सिद्ध हुआ ( वही, पृष्ठ ४६ )
१५७. हल्ल - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ |
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