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श्रमण-श्रमणी
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१२५. वेहास - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । १२६. शालिभद्र – देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २५ । १२७. शालिभद्र - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ३९ । १२८. शिव - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २०२ । १२६. स्कंदक – देखिए तीर्थङ्कर महावीर भाग २, पृष्ठ ८० ।
१३०. समुद्रपाल – चम्पानगरी में पालित-नामक एक वणिकश्रावक रहता था । वह भगवान् महावीर का शिष्य था । पोत से व्यापार करता हुआ, वह पिहुंडी - नामक नगर में आया । उसी समय किसी वैश्य ने अपनी कन्या का विवाह उससे कर दिया । तदन्तर पालित की उस पत्नी को समुद्र में पुत्र हुआ । उसका नाम उसने समुद्रपाल रखा । समुद्रपाल ने ७२ कलाएँ सीखीं और युवावस्था प्राप्त करके वह सबको प्रिय लगने लगा ।
उसके पिता ने रूपिणी नामक एक कन्या से उसका विवाह कर दिया । किसी समय गवाक्ष में बैठा हुआ समुद्रपाल ने बध योग्य चिन्ह से विभूषित किये हुए चोर को बध्यभूमि में ले जाते देखा । उसे देखकर समुद्रपाल को विचार हुआ कि अशुभ कर्मों का फल पाप रूप ही है । ऐसा विचार आने पर माता-पिता से पूछकर उसने दोक्षा ले ली ।
अनेक प्रकार के दुर्जय परिषहों के उपस्थित होने पर भी समुद्रपाल मुनि किंचित् मात्र व्यथित नहीं हुआ । श्रुतज्ञान के द्वारा पदार्थों के स्वरूप जानकर क्षमादि धर्मों का संचय करके, उसने केवलज्ञान प्राप्त किया और अंत में काल के समय में काल करके वह मोक्ष गया । ( उत्तराध्ययन, नेमिचन्द्र की टीका - सहित, अध्ययन, २१ पत्र २७३ २ - २७६ - १ )
१३१. सर्वानुभूति - देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ १२०-१२१
१ - डा० सिलवेन लेवी का अनुमान है कि इसी पिहुंड के लिए खारवेल के शिलालेख में पिथुड अथवा पिथुडग नाम आया है । और, उनका अनुमान यह भी है कि टॉलेमी का पिटुंड्र भो सम्भवतः विकुंड का ही नाम है ( ज्यागरैफी आव अली बुद्धिज्म, प ६५ )
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