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तीर्थंकर महावीर इसने भी भाग लिया था। यह श्रावक था । इसने स्वयं श्रावक-व्रत लेने की बात कही है। युद्ध स्थल से बाहर आकर इसने डाभ का संथारा बिछाया । अरिहंतों को वंदन-नमस्कार किया और सर्वप्राणातिपात आदि साधु-व्रत लिये और पडिक्कम्मी समाधि पूर्वक काल को प्राप्त हुआ। मरने के बाद यह सौधर्मदेवलोक के अरुणाभ नामक विमान में देवता-रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ चार पल्योपम रहने के बाद महाविदेह में जन्म लेगा
और तब सिद्ध होगा। यह नाग का पौत्र था। (भगवतीसूत्र सटीक भाग १, शतक ७, उद्देशा ९, पत्र ५८५-५८८.)
११६. वायुभूति-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २७६२८१; ३६७ ।
११७. वारत्त-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५० । ११८. वारिसेण-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । ११६. विजयघोष-जयघोष का प्रकरण देखिए (पृष्ठ ३३७ )। १२०. चीरकृष्णा-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ९५ ।
१२१. वीरभद्र-चउसरणपइण्णग के लेखक। इनके सम्बंध में कुछ अधिक ज्ञात नहीं है।
१२२. वेसमग-कनकपुर-नगर था। प्रियचन्द्र वहाँ का राजा था। सुभद्रा देवी उसकी रानी थी। वेसमण उनका कुमार था। उसे ५०० पत्नियाँ थी उनमें श्री देवी प्रमुख थीं। पहले इसने श्रावक-व्रत लिया पर बाद में साधु हो गया। (विपाकसूत्र; मोदो-चौकसी-सम्पादित, पृष्ठ ८१)।
१२३. वेहल्ल-~देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ ।
१२४. वेहल्ल-इसका उल्लेख अणुत्तरोववाइय में आता है। यह राजगृह का निवासी था । ६ मास तक साधु-धर्म पालकर सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुआ और महाविदेह में सिद्ध होगा (अंतगड-अणुत्तरोववाइय, मोदी-सम्पादित, पृष्ठ ७०,८३ )।
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