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तीर्थङ्कर महावीर पृष्ठ ८३ ) । उसकी माँ का नाम भद्रा था । ( वही, पृष्ठ ८३ ) । इसे ३२ पत्नियाँ थीं। बहुत वर्षों तक साधु धर्म पाल कर एक भास की संलेखना कर सर्वार्थसिद्ध-विमान में उत्पन्न हुआ। महाविदेह में जन्म लेने के बाद मुक्त होगा।
६६. पुद्गल-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ट ४४-४६ । ७०. पुरिसेन-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । ७१. पुरुषसेन-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । ७२. पुरोहित-इसी प्रकरण में उ सुयार का प्रसंग देखें । (पृष्ठ ३३२)
७३. पूणभद्र—यह पूर्णभद्र वाणिज्यग्राम का गृहपति था। पाँच वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर विपुल पर सिद्ध हुआ। (अंतगड-अणुत्तरोववाइय, मोदी-सम्पादित, पृष्ठ ४६ )
७४. पूर्णसेन-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ । ७५. पेढालपुत्र-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ २५२-२५८
७६. पेल्लअ-इसका उल्लेख अणुत्तरोवाइयदसा (अंतगड-अणुत्तरोववाइयदसाओ, मोदी-सम्पादित पृष्ठ ७०) में आता है। यह राजगृह का निवासी था । इसकी माता का नाम भद्रा था। इसे ३२ पत्नियाँ थीं। बहुत वर्षों तक साधु धर्म पाल कर एक मास को संलेखना कर सर्वार्थसिद्ध मैं उत्पन्न हुआ और महाविदेह में सिद्ध होगा वही, पृष्ठ ८३ )।
७. पोट्टिला-देखिए तेतलिपुत्र का प्रसंग । पृष्ट ३४० )। ७८. पोट्ठिल-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ २०२ ।
७६. बलश्रा-अनेक विध कानन और उद्यानादि में सुग्रीव नामक नगर में बलभद्र-नामक राजा था। उसकी पत्नी का नाम मृगा था। उसे एक पुत्र बलश्री नाम का था । वह लोगों में मृगापुत्र के नाम से विख्यात था । एक दिन वह प्रासाद के गवाक्ष से नगर के चतुष्पद, त्रिपथ और बहुपथों को कुतूहल से देख रहा था कि, उसको दृष्टि एक संयमशील साधु पर पड़ी। उसे देख कर मृगापुत्र को ध्यान आया कि, उसने उसे
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