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श्रमण-श्रमणी
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कहीं देखा है। साधु के दर्शन होने के अनन्तर, मोह कर्म के दूर होने से, अंतःकरण में शुद्ध भाव आने से उसे जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ"मैं देवलोक से च्युत होकर मनुष्यभव में आ गया हूँ,” ऐसा संज्ञिज्ञान हो जाने पर मृगापुत्र पूर्व जन्म का स्मरण करने लगा और फिर उसे पूर्वकृत संयम का स्मरण हुआ । अतः उसने अपने पिता के पास जाकर दीक्षित होने की अनुमति मांगी। उसके माता-पिता ने उसे समझाने की चेष्टा की। माता-पिता की शंका मिटाकर मृगापुत्र साधु हो गया । अनेक वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर बलश्री (मृगापुत्र) एक मास की संलेखना कर सिद्ध-गति को प्राप्त हुआ। ( उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन १९ पत्र २६०-१-२६७-१)
८०. मतदत्ता-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५४ । ८१. भद्र-देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ९३ ।
८२. भद्रनन्दी-~ऋषभपुर नगर था । थूभकरण्ड उद्यान था। उसमें धन्य यक्ष था । उस नगर में धनावह नामक राजा था । उसकी पत्नी का नाम सरस्वती था। उसे भद्रनन्दी-नामक कुमार था । यौवन तक की कथा सुबाहु के समान जान लेनी चाहिए। उसे ५०० पत्नियाँ थीं। उनमें श्रीदेवी मुख्य थी। भगवान् के आने पर उसने श्रावक-धर्म स्वीकार कर लिया। बाद में वह साधु हो गया । महाविदेह में पुनः उत्पन्न होने के बाद सिद्ध होगा। (विवागसूत्र, मोदी-चौकसी-सम्पादित, पृष्ठ ८०)
८३. भद्रनन्दो-सुघोस-नगरी में अर्जुन-नामक राजा था। उसकी पत्नी का नाम तत्तवती था। भद्रनन्दी उसका पुत्र था। भद्रनन्दी को ५०० पत्नियाँ थी । उनमें श्रीदेवी मुख्य थी। वह साधु हो गया । अंत में वह सिद्ध होगा।
८४. भद्रा-देखिए तीर्थकर महावीर, माग २, पृष्ठ ५४ । ८५. मंकाता--देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४७ ।
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