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श्रमण-श्रभणी
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साथ ले जा सकता है। जिसके पास छत्र न होगा, उसे धन्य छत्र देगा; जिसे पगरख न होगा, उसे पगरख देगा; जिसके पास कँड़ी न होगी उसे कँड़ी देगा; रास्ते में जिसे भोजन की व्यवस्था न होगी; उसे भोजन देगा; प्रक्षेप. ( अर्द्धपथे त्रुटित शम्बलस्य शम्बल पूरणं द्रव्य प्रक्षेपकः ) देगा तथा जो कोई बीमार हो अथवा अन्य किसी कारण से अशक्त हो उसे वाहन देगा।
धन्य ने सभी को आवश्यक वस्तुएँ दे दी और कहा---''आप लोग चम्पा-नगरी के बाहर अग्रोद्यान में मेरी प्रतीक्षा करें ।'
उसके बाद धन्य सार्थवाह ने शुभ तिथि, करण और नक्षत्र का योग आने पर अपनी जातिवालों को भोजन आदि कराकर, उनकी अनुमति लेकर किरियाने की गाड़ियों के साथ अहिछत्रा की ओर चला । अंग देश के मध्यभाग में होता हुआ, वह सरहद पर आ पहुँचा। वहाँ पड़ाव डालकर भविष्य की यात्रा में सावधान करने के लिए घोषणा करायी-"अगले प्रवास में एक बड़ा जंगल आने वाला है। उसने पत्र, पुष्प तथा फलों से सुशोभित नंदीफल-नामक एक वृक्ष मिलेगा। वह वर्ण, रस, गंध, स्पर्श और छाया में बड़ा मनोहर है। पर, जो कोई उसकी छाया में बैठेगा, अथवा उसका फल फूल खायेगा, तो प्रारम्भ में उसे अच्छा लगेगा; पर उसकी अकाल मृत्यु हो जायेगी। अतः कोई यात्री उस वृक्ष की छाया में न विश्राम ले और न उसका फल-फूल चखे ।" ___ आबाल वृद्ध तक यह घोषणा पहुँच जाये, इस दृष्टि से उसने तीन बार घोषणा करायी और अपने आदमियों को इसलिए नियुक्त कर दिया कि उक्त घोषणा का पालन भली प्रकार हो ।
धन्य-सार्थ की घोषणा पर ध्यान न देकर बहुत से लोगों ने उसके. नोचे विश्राम किया तथा उसके फलों को खाया और अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
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