SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ तीर्थङ्कर महावीर के घर गये तो तेलीपुत्र ने कनकध्वज के लिए कहा और सारी बातें बता गया । कनकध्वज का राज्याभिषेक हुआ तो पद्मावती ने उससे कहा - "तुम इस अमात्य को पिता तुल्य मानना । उसी के प्रताप से तुम्हें गद्दी मिली है ।" कनकध्वज ने माता की बात स्वीकार कर ली । उसके बाद पोट्टिलदेव ने कितनी ही बार केवलीभाषित धर्म का प्रतिबोध तेलीपुत्र को कराया; परन्तु तेतलीपुत्र को प्रतिबोध नहीं हुआ । एक बार पोडिलदेव को इस प्रकार अध्यवसाय हुआ – “ कनकध्वज राजा तेतलिपुत्र का आदर करता है । इसीलिए वह प्रतिबोध नहीं प्राप्त करता है ।" ऐसा विचारकर उसने कनकध्वज राजा को तेतलिपुत्र से विमुख कर दिया । उसके बाद एक बार तेतलिपुत्र राजा के पास आया। मंत्री को आया देखकर भी राजा ने उसका आदर नहीं किया । तेतलिपुत्र ने कनकध्वज को हाथ जोड़ा तो भी राजा ने उसका आदर नहीं किया और वह चुप रहा । उसके पश्चात् कनकध्वज को विपरीत जानकर तेतलिपुत्र को भय हो गया और घोड़े पर सवार होकर वह अपने घर वापस चला आया । ईश्वर आदि जो भी तेतलिपुत्र को देखते, अब उसका आदर नहीं करते । अपना अनादर देखकर तेतलीपुत्र ने तालपुट खा लिया; पर उसका भी प्रभाव उस पर न हुआ । अपनी तलवार अपनी गरदन पर चलायी; पर बद भी निष्फल गया । फाँसी लगायी तो उसकी रस्सी टूट गयी । वह इन परिस्थितियों पर विचार कर ही रहा था कि, उस समय पोडिलदेव उसके सम्मुख उपस्थित हुआ और बोला - "हे तेतलि ! आगे प्रपात है, पीछे हाथी का भय है । इतना अंधेरा है कि कुछ सूझता नहीं है । मध्यभाग में बाणों की वृष्टि होती है, इस प्रकार चारों ओर भय ही भय है। ग्राम में आग लगी हैं अरथ्य धकधका रहा है तो तुम्हें ऐसे भय में कहाँ जाना उचित है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy