SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३५ ) सुत्तथो खलु पढमो, बीयो निज्जुत्ति मीसियो भणियो। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणु प्रोगे ॥ पहला अनुयोग, सूत्रार्थ मूल और अर्थरूप से, दूसरा अनुयोग नियुक्ति सहित कहा गया है, और तीसरा अनुयोग प्रसंगानुप्रसंग के कथन से निरवशेष कहा जाता है । सूत्रों के स्पष्ट होने के लिए विचारामृत-संग्रह ( पत्र १४-२) में कुलमंडन सूरि ने नियुक्ति भाष्य संग्रहणि चूर्णि पंजिकादि ।। का आश्रय लेने का विधान किया है । और, इसके समर्थन में उन्होंने उक्त ग्रंथ में उसी स्थल पर विशेष विचार किया है। मैंने ऊपर कहा है कि, जैन-आगमों को देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने लिपिबद्ध किया। जैन-आगम तो अपने प्रारम्भ से ही व्यवस्थित थे। ये वाचनाएँ वस्तुतः आगमों को विस्मृत न होने देने के प्रयास मात्र थे; क्योंकि वैदिकों के समान जैनों में भी पहले शास्त्रों को कण्ठ करने की प्रथा थी और लिपि-शास्त्र के परिचय के बावजूद शास्त्र लिखे नहीं जाते थे। जैन-साहित्य में कितने ही स्थलों पर लिपियों के उल्लेख हैं। स्वयं व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ में ____णभो वंभीए लिविए कहा गया है । समवायांग सूत्र के १८-वें समवाय में लिपियों के नाम गिनाये गये हैं : बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखविहाणे पं० तं०-१ बंभी, २ जवणो, ३ लियादासा, ४ ऊरिया, ५ खरोट्टिा , ६ खर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy