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( ३४ )
(१) श्रागच्छति गुरु पारम्पर्येणेत्यागमः ।
(२) आचार्य चाऽऽगम इति ।
(४) गुरु
- अणुयोगद्वार सटीक पत्र ३८-२ । (३) गुरुपारम्पर्येणागच्छतीत्यागमः श्र--समन्ताद्गभ्यन्तेज्ञायन्ते जीवादयः पदार्था अनेनेति वा ।
समीपे श्रूयत
- अणुयोगद्वार सटीक, पत्र २१९-१ । इति श्रयत्, अर्थान्तं सूचनात् सूत्रं । - अणुयोगद्वार सर्टोक, पत्र ३८-२ । जैन जगत को अनादि और अनन्त मानते हैं । अतः ये आगम भी अनादि और अनन्त है ।
इन आगमों के लिए नन्दीसूत्र सटीक ( सूत्र ५८ पत्र २४७- १ ) में पाठ आता है।
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: - भगवती सूत्र सटीक, श०५, उ०४, पत्र ४०१ । परम्पर्येणा गच्छतीत्यागमः आत वचनं
इच्चेइयं दुवालसँगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवद्द, न कधाइ न भविस्सइ, भुविं च भवइ च भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए' अक्खए, अव्यए, श्रवट्टिए निच्चे ।
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- यह द्वादशांगी गणिपिटक कभी नहीं था, ऐसा नहीं, कभी नहीं है ऐसा भी कोई समय नहीं, तथा कभी नहीं होगा यह भी नहीं, गतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा, यह द्वादशांगी ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अवस्थित तथा नित्य है ।
अव्यय ( व्यय रहित )
सूत्रों के अर्थ अति गहन - गम्भीर है । उनके अध्ययन के लिए नंदीमूत्र ( पत्र २४९-२ ) में आता है
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