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________________ ( ३३ ) जैन-आगमों की यह प्रथम वाचना पाटलिपुत्र-वाचना के नाम से विख्यात है। यह प्रथम वाचना महावीर-निर्वाण-संवत् १६० के लगभग हुई । उसके कुछ समय बाद, भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के ८२७ अथवा ८४० वर्ष के बीच फिर आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में मथुरा में आगमों के संरक्षण का दूसरा प्रयास हुआ। इसी समय के लगभग आचार्य नागार्जुन के नेतृत्य में वल्लभी में सूत्रों की रक्षा का प्रयास हुआ। यह वल्लभी-वाचना कहलायी। और, उसके लगभग १५० वर्षों के बाद वल्लभी में देवद्धिगणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में आगमों को लिपिबद्ध किया गया। कुछ लोग नंदिसूत्र के लेखक देववाचक और देवद्धिगणि को एक मानते हैं; पर यह उनकी भूल है। देववाचक नंदि के सूत्रकार थे और देवद्धि गणि ने आगमों को लिपिवद्ध मात्र किया । निचित है कि, देववाचक देवद्धिगणि से पूर्ववर्ती थे। ___ आगमों का वर्तमान रूप वस्तुतः देवद्धिगणि श्रमाश्रमण के प्रयास का रूप है। पर, यह कहीं नहीं मिलता कि आगम महावीर स्वामी के बाद किसी ने लिखे। जो कुछ भी प्रयास था, वह तीर्थंकर भगवान् के उपदेशों को विस्मृत होने देने से बचाने का ही प्रयास था । __'आगम' शब्द का जहाँ भी स्पष्टीकरण है, वहाँ इसे गुरुपरम्परा से आया हुआ ही बताया गया है। हम उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ कर रहे हैं : ३ प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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