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सावित्रा, ७ पहाराइया, ८ उच्चत्तरिया, ६ अक्खरपुट्टिया, १० भोगवयता, ११ वेणतिया, १२ णिण्हइया, १३ अंकलिवि, १४ गणिअलिबि, १५ गंधवलिवी, १६ भूयलिवि, प्रादंसलिवी, १७. माहेसरीलिवी, १८ दामिलिवी, १६ बोलिदिलिवो।
-१ ब्राह्मी, २ यावनी, ३ दोषउपरिका, ४ खरोष्टिका, ५ खरशाविका, ६ पहारातिगा, ७ उच्चत्तरिका, ८ अक्षरपृष्टिका ९ भोगवतिका, १० वैणकिया, ११ निण्हविका, १२ अंकलिपि, १३ गणितलिपि, १४ गंधर्वलिपि, १५ आदर्शलिपि, १६ माहेश्वरी, १७ दामिलिपि, १८ बोलिदलिपि ।
विशेषावश्यक भाष्य टीका ( गाथा ४६४, पत्र २५६ ) में १८ लिपियों के नाम इस प्रकार दिये गये हैं :
१ हंसलिवि, २ भूअलिवि, ३ जक्खी तह, ४ रक्खसी य बोधन्वा, ५ उड्डो, ६ जवणि, ७ तुरुको, ८ कीरी, ९ दविड़ीय १० सिंधविया, ११ मालविणी, १२ नाड, १३ नागरि, १४ लाडलिवि, १५ पारसी य बोधन्वा । त ह १६ अनिमित्ती य लिवी, १७ चाणक्की, १८ मूलदेवो य ।
__ अठारह लिपियों के नाम प्रज्ञापनासूत्र सटीक पत्र ५६-१ में भी आये हैं।
जैनों के लिपि-ज्ञान का अकाट्य प्रमाण उनके शिलालेख हैं। भगवान् महावीर के महानिर्वाण के ८४ वर्ष बाद के एक शिलालेख का चर्वा-चित्र और उसका पाठ हमने इसी पुस्तक में दिया है। उसके बाद के तो अशोक, खारवेल तथा मथुरा आदि के शिलालेख बहुज्ञात हैं।
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