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________________ श्रमण श्रमणी ३३६ सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं हो सकता, केवल ॐकार' मात्र कहने से कोई ब्राह्मण नहीं हो सकता, जंगल में रहने से कोई मुनि तथा कुशा आदि के वस्त्र धारण कर लेने से कोई तापस नहीं हो सकता । समभाव से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तप से तपस्वी होता है। इस प्रकार कहने के बाद , उन्होंने श्रमण-धर्म का प्रतिपादन किया । संशय के छेदन हो जाने पर विजयघोष ने विचार करके जयघोष मुनि को पहचान लिया कि जयघोष मुनि उनके भाई हैं। विजयघोष ने जयघोष की प्रशंसा की। जयघोष मुनि ने विजयघोष से कहा दीक्षा लेकर संसार-सागर में वृद्धि रोको।" विजयघोष ने धर्म सुन कर दीक्षा ले ली । और, अंत में दोनों ही ने सिद्धि प्राप्त की। ३४. जयंति-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २८-३२ ३५. जाली-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ५३ १-न कारेणोपलक्षणत्वाद् ' भूर्भुवः स्वः' इत्यादिना ब्राह्मणः । -उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित पत्र ३०८-१ २-समथाए समणो होइ, बम्भचेरण बम्भयो । नाणेण य मुणी होइ, तण होइ तावसो॥३२ ।। कम्नुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तीओ। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो होइ कम्मुणो ॥ ३३ ॥ इसकी टीका करते हुए नेमिचन्द्राचार्य ने लिखा है-..."कर्मणा' क्रियया ब्राह्मणो भवति । उक्तं हि-तमा दानं दमो ध्यानं, सत्यं शौच धृतिर्घणा । ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यमेतद्ब्राह्मण लक्षणम् ॥ १ ॥ तथा 'कर्मणा' क्षतत्राणलक्षणेन भवति क्षत्रियः । वैश्यः-'कर्मणा' कृषि पाशुपाल्यादिना भवति । शूद्रे भवति तु 'कर्मणा' शोचनादिहेतु प्रेषणादि सम्पादन रूपेण । कर्माभावे हि ब्राह्मणादिव्यपदेशानाम सत्तैवेति । ब्राह्मग प्रक्रमे य यच्छेषाभिधानं तयाप्तिदर्शनार्थम् । किमिदं स्वमनीषिकयैवोच्यते ? . -वही, पत्र ३०८-१ ३-उत्तराध्ययन नेमिचंद्र की टीका सहित, अध्ययन २५, पत्र ३०५-२-३०६-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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