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________________ श्रमण-श्रमणी ३३७ साकेत के रहने वाले थे, इनकी माँ का नाम भद्रा था। इन्हें ३२ पत्नियाँ थीं । और थावच्चा-पुत्र के समान इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। ३१. चिलात-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २६५-२६६ ३२. जमालि-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २४-२७, २८, १९०-१९३ ३३. जयघोष-ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुए जयघोष-नामक एक मुनि ग्रामानुग्राम बिहार करते हुए वाराणसी नगरी में आये । वे मुनि वाराणसी के बाहर मनोरम-नामक उद्यान में प्रासुक शय्या और संस्तारक पर विराजमान होते हुए वहाँ रहने लगे। उसी नगरी में विजयघोषनामक एक विख्यात ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। उस समय अनगार जयघोष मासोपवास की पारणा के लिए विजयघोष के यज्ञ में भिक्षार्थ उपस्थित हुए। भिक्षा माँगने पर विजयघोष ने भिक्षा देने से इनकार करते हुए कहा--- "हे भिक्षो ! जो वेदों के जानने वाले विप्र हैं तथा जो यज्ञ करने वाले द्विज हैं और जो ज्योतिषांग के ज्ञाता है तथा धर्मशास्त्रों में पारगामी हैं, उनके लिए यहाँ भोजन तैयार है।" ऐसा सुनकर भी जयघोष मुनि किंचित् मात्र रुष्ट नहीं हुए । सन्मार्ग , बताने के लिए जयघोष मुनि ने कहा-"न तो तुम वेदों के मुख को जानते हो. न यज्ञों के मुख को। नक्षत्रों तथा धर्म को भी तुम नहीं समझते । जो अपने तथा परके आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हैं, उनको भी तुम नहीं जानते । यदि जानते हो तो कहो ?" १-अंतगडदसा प्रो। अंतगडदमा अं.- प्रणुत्तरोववाइयदसाओ ) पष्ठ ५१, ५६ २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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