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तीर्थंकर महावीर मैं तत्पर हुए और दुःखों के अंत के गवेषक बने । अर्हत्-शासन में पूर्व जन्म की भावना से भावित हुए वे ६ अंत में मुक्त हुए।
१६. ऋषभदत्त-देखिए, तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ २०-२४
१७. ऋषिदास-यह राजगृह के निवासी थे। इनकी माता का नाम भद्रा था और ३२ पत्नियाँ थीं। थावच्चापुत्र के समान गृह-त्याग किया। मासिक संलेखना करके मर कर सर्वार्थसिद्ध में गये। अंत में महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे।
१८. कपिल-कौशाम्बी नगरी में जितशत्र-नामक राजा राज्य करता था। उसकी राजधानी में चतुर्दश विद्याओं का ज्ञाता काश्यप-नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह अपने यहाँ के पंडितों में अग्रणी था। राज्य की ओर से उसे वृत्ति नियत थी। उसे एक पतिपरायणा भार्या थी। उसे पुत्र था। उसका नाम कफिलदेव था । कुछ काल बाद काश्यप ब्राह्मण का देहान्त हो गया। उसके बाद एक अन्य व्यक्ति राजपंडित के स्थान पर नियुक्त हुआ। वह राजपंडित छत्र-चमरादिक से युक्त होकर नगर में भ्रमण करने लगा । एक दिन वह बड़े धूम-धाम से जा रहा था कि, उसे देख कर काश्यप ब्राह्मण की पत्नी रो पड़ी। कपिल ने रोने का कारण पूछा तो उसकी माता ने कहा-"तुम्हारे पिता पहले राजपंडित थे। उनके निधन के बाद तुम राजपंडित होते; पर विद्यार्जन न किये होने के कारण तुम उस पद पर नियुक्त नहीं हुए।” माता के कहने पर कपिल श्रावस्ती-नगरी में अपने पिता के मित्र इन्द्रदत्त के घर विद्या पढ़ने गया । इन्द्रदत्त ने शालिभद्र-नामक एक धनी के घर उसके भोजन की व्यवस्था
१-उत्तराध्ययन नेमिचंद्र की टीका सहित अ० १४ पत्र २०४-२-२१४-१।
२-अगुप्तरोववाइयदसाओ (अंतगडदसाओ-अगुत्तरोववाश्यासाओ) एन० वी. वैद्य सम्पादित, पष्ट ५६ ।
३-वही पृष्ठ ५१-५९ ।
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